UP Teacher Recruitment Case: उत्तर प्रदेश 69000 शिक्षक भर्ती मामले में सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। सुप्रीम कोर्ट ने 16 अगस्त के इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगा दी है। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस मनोज मिश्रा और जस्टिस जेबी पारदीवाला की बेंच ने यह फैसला सुनाया।
सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार और हाईकोर्ट में पक्षकारों को भी नोटिस जारी करके जवाब मांगा है। अदालत ने दोनों पक्षों अनुसूचित जाति व ओबीसी वर्ग के अभ्यर्थियों और कार्यरत शिक्षकों से लिखित दलीलें पेश करने को कहा है। इस मामले में अब अगली सुनवाई 23 सितंबर को होगी।
हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में दी गई थी चुनौती
इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने 16 अगस्त को शिक्षक भर्ती की मेरिट लिस्ट रद्द करते हुए बेसिक शिक्षा विभाग को तीन महीने में नई सूची जारी करने का आदेश दिया था। सुप्रीम कोर्ट में हाईकोर्ट के इस फैसले के खिलाफ सामान्य वर्ग के अभ्यर्थियों की तरफ से चुनौती दी गई थी। याचिका में कहा गया था कि शिक्षक भर्ती की चयन प्रकिया पारदर्शी थी।
चयन प्रकिया उत्तर प्रदेश लोक सेवा (अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जन-जातियों और अन्य पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण) अधिनियम, 1994 और उत्तर प्रदेश बेसिक शिक्षक नियामवली- 1981 के प्रावधानों के अनुरूप थी। इसके तहत OBC को 27 प्रतिशत, SC को 21 प्रतिशत और ST को 2 प्रतिशत आरक्षण दिया गया है।
याचिका में कहा गया था कि 25 दिसंबर 2018 के शासनादेश के मुताबिक, दिव्यांगजनों को 4 प्रतिशत, स्वतंत्रता सेनानी के आश्रितों को 2 प्रतिशत, पूर्व सैनिकों को 5 प्रतिशत और महिलाओं को 20 प्रतिशत आरक्षण दिया गया है।
याचिकाकर्ता ने याचिका में कहा था कि ऐसे में अब सरकार द्वारा जारी मेरिट लिस्ट दोबारा तैयार करने की जरूरत नहीं है। याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट के फैसले को रद्द करने की मांग करते हुए कहा था कि यदि 69 हजार शिक्षक भर्ती के लिए दोबारा से मेरिट लिस्ट तैयार की गई तो जनरल वर्ग के अभ्यर्थियों को आर्थिक रूप से परेशानियां झेलनी पड़ेंगी। याचिका में आगे कहा गया था कि यदि ऐसा हुआ तो उन्हें संविधान के अनुच्छेद-21 के तहत मिले उनके मौलिक अधिकार से वंचित कर दिया जाएगा।
HC ने दोबारा लिस्ट जारी करने के दिए थे आदेश
69000 शिक्षकों की भर्ती में आरक्षण का पालन न करने का मामला लंबे समय से हाईकोर्ट में लंबित था। भर्ती में 19 हजार सीटों के आरक्षण को लेकर अनियमितता का आरोप लगाते हुए कई लोगों ने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।
हाईकोर्ट ने शिक्षकों की मौजूदा लिस्ट को गलत मानते हुए मेरिट लिस्ट को रद्द कर दिया था। साथ ही, योगी सरकार से तीन महीने के अंदर नई लिस्ट तैयार कर जारी करने का आदेश दिया था।
क्या है पूरा मामला?
दिसंबर 2018 में लिस्ट आने पर विवाद शुरू हो गया था। शिक्षक भर्ती परीक्षा में शामिल अभ्यर्थियों ने 19 हजार पदों को लेकर आरक्षण में गड़बड़ी का आरोप लगाया था। उन्होंने पूरी भर्ती प्रक्रिया पर सवाल उठाए थे।
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योगी सरकार ने 69000 सहायक अध्यापकों की भर्ती के लिए जनवरी 2019 में परीक्षा कराई थी। इसमें 4.10 लाख अभ्यर्थी शामिल हुए थे। करीब 1.40 लाख अभ्यर्थी भर्ती परीक्षा में सफल हुए, जिनकी मेरिट लिस्ट जारी की गई। यह लिस्ट आते ही विवादों में घिर गई। अभ्यर्थियों ने आरोप लगाया था कि आरक्षण के चलते उनका नाम लिस्ट में नहीं है।