Pulse Production: आगामी वर्षों में दलहन उत्पादन में उत्तर प्रदेश पूरी तरह आत्मनिर्भर हो जाएगा। साल 2017 से 2024 तक यानी सात सालों में प्रदेश में दलहन उत्पादन में करीब 36% की वृद्धि हुई है। प्रदेश में दलहन का उत्पादन 23.94 लाख मीट्रिक टन से बढ़कर 32.55 लाख मीट्रिक टन हो गया। इसके अलावा, दलहन का प्रति हेक्टेयर उपज बढ़ाने के लिए डबल इंजन की सरकार किसानों को हर संभव मदद करने का प्रयास कर रही है।
ये है सरकार की कार्ययोजना
प्रदेश में दलहन उत्पादन बढ़ाने के लिए अरहर, उर्द और मूंग की कार्ययोजना तैयार कर ली गयी है। इस योजना के तहत राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन योजना (National Food Security Mission Scheme) के अंतर्गत 27200 हेक्टेयर फसल प्रदर्शन आयोजित होंगे। इसी तरह दलहन राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन योजना के अंतर्गत 31553 कुंतल बीज वितरण और 27356 कुंतल प्रमाणित बीज उत्पादन का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। इसके अलावा, बीज व्यवस्था को मजबूत करने के लिए 14 सीड हब तैयार किए गए हैं। इनके जरिए 21000 कुंतल बीज उत्पादन किया जायेगा।
बुंदेलखंड में विकसित होंगे आदर्श दलहन ग्राम
दलहन उत्पादन में बुंदेलखंड के जिलों-बांदा, महोबा, जालौन, चित्रकूट और ललितपुर में आदर्श दलहन ग्राम विकसित किये जायेंंगे। बता दें कि उत्तर प्रदेश दलहन का सबसे बड़ा उत्पादक और उपभोक्ता राज्य है, लेकिन अभी उपभोग का आधा ही उत्पादन प्रदेश में होता है। रणनीति के अनुसार तय समयावधि में प्रति हेक्टेयर उपज 14 से बढ़ाकर 16 कुंतल करने का है। कुल उपज का लक्ष्य 30 लाख टन है। इसके अलावा, करीब 1.75 लाख हेक्टेयर अतिरिक्त रकबे को दलहन की फसलों से कवर करने की भी तैयारी है।
सरकार इसके लिए दलहन की परंपरागत फसलों की उन्नत और अधिक उपज देने वाली प्रजातियों के बीज उपलब्ध कराएगी। कुछ प्रगतिशील किसानों के यहां इनका प्रदर्शन भी होगा। किसानों को बड़ी संख्या में बीज के निशुल्क मिनीकिट भी दिए जाएंगे।
आत्मनिर्भरता से विदेशी मुद्रा भी बचेगी
भारत दुनिया का सबसे बड़ा दाल का उत्पादक, उपभोक्ता और आयातक है। सबसे अधिक आबादी के नाते इस उपभोग का सबसे अधिक हिस्सा यूपी का ही है। ऐसे में पूरी दुनिया के दाल उत्पादक देशों (कनाडा, आस्ट्रेलिया, अमेरिका, टर्की,और म्यांमार) की नजर न केवल भारत और उत्तर प्रदेश के पैदावार, बल्कि छह महीने के भंडारण पर भी रहती है। ऐसे में अगर पैदावार कम है, तो यहां की भारी मांग के मद्देनजर अंतरराष्ट्रीय बाजार में दाल यूं ही तेज हो जाती है।
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इस पर रुपये के मुकाबले डॉलर की क्या स्थिति है, इसका भी बहुत असर पड़ता है। रुपये के मुकाबले अगर डॉलर के दाम अधिक हैं तो आयात भी महंगा पड़ता है। इस तरह दाल के आयात में देश को बहुमूल्य विदेशी मुद्रा भी खर्च करना होता है। अगर उत्तर प्रदेश दालों के उत्पादन में आत्मनिर्भर हो जाय तो विदेशी मुद्रा भी बचेगी।