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’अंतरराष्ट्रीय ऐल्बिनिज्म जागरूकता दिवस’ आज, जानें क्या है इतिहास

International Albinism Awareness Day today know its history

International Albinism Awareness Day 2024: दुनियाभर में आज 13 जून को ’अंतरराष्ट्रीय ऐल्बिनिज्म जागरूकता दिवस’ मनाया जाता है। इसका मुख्य उद्देश ऐल्बिनिज्म को लेकर जागरूकता फैलाना है। आज के दिन दुनियाभर में कई कार्यक्रमों का आयोजन कर ऐल्बिनिज्म को लेकर लोगों को जागरूक किया जाता है। हमारे समाज में इस रोग को लेकर कई तरह की गलत धारणा फैली हुई है। हमारे देश में इस रोग से ग्रसित लोगों को भेदभाव का सामना करना पड़ता है। इस रोग को लेकर फैले तमाम गलत तथ्यों को रोकने और जागरूकता फैलाने के लिए ’अंतरराष्ट्रीय ऐल्बिनिज्म जागरूकता दिवस’ मनाया जाता है। आज हम आपको ऐल्बिनिज्म, इसके कारण और अंतरराष्ट्रीय ऐल्बिनिज्म जागरूकता दिवस के इतिहास के बारे में आप को बताते हैं।

अंतरराष्ट्रीय ऐल्बिनिज्म जागरूकता दिवस का इतिहास

संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 18 दिसंबर, 2014 को आयोजित सभा में 13 जून को ‘इंटरनेशनल ऐल्बिनिज्म अवेरनेस डे’ के रूप में मनाए जाने की घोषणा की। जिसके बाद 2015 से अंतरराष्ट्रीय ऐल्बिनिज्म जागरूकता दिवस मनाया जाने लगा। इसका मुख्य उद्देश्य ऐल्बिनिज्म बीमारी को लेकर लोगों को जागरूक करना है।

अंतरराष्ट्रीय ऐल्बिनिज्म जागरूकता दिवस 2024 की थीम

2024 में अंतर्राष्ट्रीय एल्बिनिज्म जागरूकता दिवस की शुरुआत के एक दशक पूरे हो रहे हैं। इस अवसर को चिह्नित करने के लिए, इस वर्ष का विषय है: “IAAD के 10 वर्ष: सामूहिक प्रगति का एक दशक।”

क्या है ऐल्बिनिज्म रोग?

ऐल्बिनिज्म या रंगहीनता एक वंशानुगत डिसऑर्डर का एक समूह है, इस रोग का संबंध त्वचा, आंखों और बालों से है। जिसमें पिग्मेंट मेलानिन का बहुत कम या कोई उत्पादन नहीं होता। बॉडी के द्वारा उत्पादित मेलानिन का प्रकार और मात्रा ही त्वचा, बालों और आंखों का रंग निर्धारित करती है। मेलेनिन ऑप्टिक नसों के विकास में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसलिए ऐल्बिनिज्म से ग्रसित लोगों को दृष्टि संबंधी समस्याएं भी हो सकती हैं। मेलानिन की कमी होने पर बाल या त्वचा का रंग सफेद, पीला, हल्का भूरा, हल्का लाल हो सकता है।

ऐल्बिनिज्म होने के कारण

ऐल्बिनिज्म एक अनुवांशिक बीमारी है। यह पैरेंट्स के जरिए बच्चों को हो सकता है। इसके अलावा, बाल, त्वचा और आंखों को रंग प्रदान करने वाला तत्व मेलानिन जब कम होने लगता है, तब यह बीमारी शुरू हो सकती है।


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