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मथुरा जिला अस्पताल में IPHL लैब बनकर तैयार, सभी जांच होंगी मुफ्त

उत्तर प्रदेश के मथुरा में महर्षि दयानंद सरस्वती जिला अस्पताल में बहुत जल्द IPHL लैब शुरू होने वाली है। इस लैब को लगभग 60 लाख रुपये की लागत से तैयार किया गया है। इस लैब के माध्यम से लोग कई प्रकार की जांच के साथ-साथ तीन बड़ी बिमारियों की जांच फ्री में करा सकते हैं।
Maharishi Dayanand Saraswati District Hospital | Shreshth uttar pradesh |

उत्तर प्रदेश के मथुरा में महर्षि दयानंद सरस्वती जिला अस्पताल में बहुत जल्द IPHL लैब शुरू होने वाली है। इस लैब को लगभग 60 लाख रुपये की लागत से तैयार किया गया है। इस लैब के माध्यम से लोग कई प्रकार की जांच के साथ-साथ तीन बड़ी बिमारियों की जांच फ्री में करा सकते हैं। जल्द ही इस लैब को आम जनता के लिए खोल दिया जाएगा।

मिली जानकारी के मुताबिक, महर्षि दयानंद सरस्वती जिला अस्पताल (Maharishi Dayanand Saraswati)  के सीएमएस मुकुंद बंसल का कहना है कि अस्पताल में एक लैब तैयार कराई गई है। IPHL (Integrated Public Health Laboratories) लैब में आम जांचो के अलावा सिकल सेल एनीमिया (Sickle Cell Anemia), हीमोफिलिया (Haemophilia) और थैलेसीमिया (Thalassemia) की जांच भी फ्री में कराई जाएगी। इन तीन जांचों को बाहर किसी हॉस्पिटल में कराने पर काफी खर्च आता है, लेकिन अस्पताल में सभी जांचें बिल्कुल फ्री होंगी।

सिकल सेल एनीमिया

सिकल सेल रोग लाल रक्त कोशिका विकारों का एक समूह है, जो हीमोग्लोबिन को प्रभावित करता है, वह प्रोटीन जो शरीर में ऑक्सीजन ले जाता है। आम तौर पर, लाल रक्त कोशिकाएं डिस्क के आकार की होती हैं और रक्त वाहिकाओं के माध्यम से आसानी से चलने के लिए पर्याप्त लचीली होती हैं। सिकल सेल रोग में, आनुवंशिक उत्परिवर्तन के कारण लाल रक्त कोशिकाएं अर्धचंद्राकार या “सिकल” आकार की हो जाती हैं। यह सिकल आकार की लाल रक्त कोशिकाएं आसानी से मुड़ती या हिलती नहीं हैं और शरीर के बाकी हिस्सों में रक्त के प्रवाह को अवरुद्ध कर सकती हैं। शरीर में अवरुद्ध रक्त प्रवाह गंभीर समस्याओं को जन्म दे सकता है, जिसमें स्ट्रोक , आंखों की समस्याएं, संक्रमण और दर्द के दौरे शामिल हैं जिन्हें दर्द संकट कहा जाता है।

हीमोफिलिया

हीमोफीलिया आनुवंशिक रोग है, जिसमें शरीर के बाहर बहता हुआ रक्त जमता नहीं है। इसके कारण चोट या दुर्घटना में यह जानलेवा साबित होती है क्योंकि रक्त का बहना जल्द ही बंद नहीं होता। विशेषज्ञों के अनुसार इस रोग का कारण एक रक्त प्रोटीन की कमी होती है, जिसे ‘क्लॉटिंग फैक्टर’ कहा जाता है। इस फैक्टर की विशेषता यह है कि यह बहते हुए रक्त के थक्के जमाकर उसका बहना रोकता है।

थैलेसीमिया

थैलेसीमिया बच्चों को माता-पिता से अनुवांशिक तौर पर मिलने वाला रक्त-रोग है। इस रोग के होने पर शरीर की हीमोग्लोबिन निर्माण प्रक्रिया में गड़बड़ी हो जाती है जिसके कारण रक्तक्षीणता के लक्षण प्रकट होते हैं। इसकी पहचान तीन माह की आयु के बाद ही होती है। इसमें रोगी बच्चे के शरीर में रक्त की भारी कमी होने लगती है जिसके कारण उसे बार-बार बाहरी खून चढ़ाने की आवश्यकता होती है।


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