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उत्तराखंड में ब्रिटिशकालीन रेल इंजन, कभी 2 फीट की पटरी पर दौड़ता था, जानें कीमत


British Era Railway Engine: ब्रिटिशकाल शासन ने भारत पर अपना 190 साल तक कब्ज जमाएं रखा। अंग्रेजी राज के क्रूर चेहरे से जुड़ी कई कहानियां आज भी इतिहास के पन्नों में दर्ज हैं। अंग्रेजी हुकूमत की आज भी भारत में जगह-जगह निशानियां आपको देखने को मिल जाएंगी। ब्रिटिशकालीन कई ऐसी निशानियां हैं, जो आज धरोहर के रूप में भारत में हैं।

ब्रिटिशकालीन एक धरोहर हल्द्वानी के उत्तराखंड फॉरेस्ट ट्रेनिंग एकेडमी परिसर में भी है। यहां ब्रिटिशकालीन 1926 का भाप इंजन शोभा बढ़ा रहा है। कभी यह इंजन दो फीट की पटरियों पर बेधड़क दौड़ता था और जंगल से बेशकीमती लकड़ियों की ढुलाई करता था। ब्रिटिशकाल में यह इंजन वन विभाग की शान हुआ करता था, जिसे आज वन विभाग धरोहर के रूप में संजोए हुए है। बताया जाता है कि इस रेल के इंजन से नंधौर घाटी के जंगलों से बेशकीमती साल की लकड़ियों की ढुलाई की जाती थी और इन लकड़ियों को हथियारों के बट बनाने में प्रयोग किया जाता था।

ब्रिटिशकालीन इस धरोहर को वन विभाग ने आज भी संजोकर रखा है। बताया गया कि ब्रिटिशकाल के दौरान वन विभाग द्वारा सन 1826 में मेसर्स जॉन फाउलर कंपनी लीड्स (इंग्लैंड) से 14012 रुपये और 50 पैसे में खरीदा गया था। रेलवे पटरी की बीच की दूरी मात्र 2 फीट थी, जबकि औसत गति रफ्तार 7 मील प्रति घंटा हुआ करता थी। 7 टन वजन ले जाने की इस इंजन में क्षमता थी। कहा जाता है कि इस ट्रेन के इंजन की छुक-छुक की आवाज कभी दूर तक सुनाई देती थी।

जानकार बताते हैं कि अंग्रेज भारत पहुंचे थे तो शुरू से ही यहां की वन संपदा पर उनकी नजर बनी हुई थी। कुमाऊं मंडल के चोरगलिया स्थित जौलाशाल जंगल शाल की बेशकीमती लकड़ियों के लिए जाना जाता था। अंग्रेज अपने हथियारों के बट सहित अन्य सामग्री बनाने के लिए शाल की लकड़ी का ही प्रयोग करते थे। जानकार बताते हैं कि प्रथम विश्व युद्ध के दौरान हथियारों में प्रयोग की गईं बट की लकड़ियां कुमाऊं मंडल की जौलाशाल की जंगलों की थीं। उस समय लकड़ियों को ढोने के लिए कोई संसाधन नहीं था, तब 1926 में वन विभाग ने इस इंजन को खरीदा था।

1926 से 1937 तक इस इंजन ने वन विभाग का बखूबी साथ निभाया और वन विभाग को भी लाभ पहुंचाया। इस इंजन को 40 हॉर्स पावर की शक्ति से बनाया गया था और एक बार में 7 टन लकड़ी ढोया करता था, जबकि इंजन की रफ्तार प्रति घंटा 7 मील हुआ करती थी। ट्रामवे ट्रेन को नंधौर घाटी से जोड़ने के लिए लालकुआं-चोरगलिया होते हुए इसका प्रयोग किया जाता था और लालकुआं से चोरगलिया के लिए लाइन भी बिछाई गई थी।

वन क्षेत्राधिकारी मदन सिंह बिष्ट ने बताया कि ब्रिटिश कालीन इंजन उत्तराखंड फॉरेस्ट ट्रेनिंग एकेडमी की धरोहर है। इस ब्रिटिशकालीन रेल के इंजन को देखने के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं।


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