Supreme Court: उच्चतम न्यायालय ने दिल्ली में हर दिन 3,800 टन ठोस कचरा अनुपचारित रह जाने और आसपास के इलाकों में उपचार के लिए पर्याप्त संयंत्र नहीं होने की स्थिति को ‘‘भयावह’’ बताया और कहा कि यह प्रदूषण मुक्त वातावरण में रहने के नागरिकों के मौलिक अधिकार का उल्लंघन है। शीर्ष अदालत ने गुरुग्राम, फरीदाबाद और ग्रेटर नोएडा जैसे क्षेत्रों से प्रति दिन निकलने वाले ठोस कचरे और उनके उपचार की क्षमता के आंकड़ों का हवाला देते हुए कहा कि दिल्ली और आसपास के क्षेत्रों में हो रहे विकास कार्यों को देखते हुए स्पष्ट है कि यह आगे और बढ़ेगा।
न्यायमूर्ति एएस ओका और न्यायमूर्ति उज्जल भुइयां की पीठ ने कहा कि यह सुनिश्चित करने के लिए तत्काल उपाय किए जाने चाहिए कि अनुपचारित ठोस कचरे की मात्रा तब तक न बढ़े, जब तक कि उनके उपचार के लिए उचित व्यवस्था नहीं हो जाती। पीठ ने आवास और शहरी मामलों के केंद्रीय मंत्रालय के सचिव को सभी संबंधित अधिकारियों की एक बैठक बुलाकर समाधान खोजने और रिपोर्ट को अदालत के समक्ष रखने का निर्देश दिया है।
पीठ ने कहा, ‘‘यदि अधिकारी किसी ठोस प्रस्ताव के साथ आने में विफल रहते हैं, तो हमें राजधानी दिल्ली और आसपास के इलाकों में पर्यावरण की देखभाल के लिए कठोर आदेश देने पर विचार करना होगा।’’ अदालत ने कहा, ‘‘हमें आशा और विश्वास है कि सभी अधिकारी इस मुद्दे को बहुत गंभीरता से लेंगे क्योंकि प्रथम दृष्टया हमने पाया है कि किसी भी अधिकारी ने हर दिन उत्पन्न होने वाले ठोस कचरे से निपटने के लिए पर्याप्त क्षमता नहीं होने के गंभीर परिणामों पर विचार करने की जहमत नहीं उठाई है।’’ पीठ ने कहा कि आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय के सचिव द्वारा एक रिपोर्ट तैयार की जाएगी और 19 जुलाई तक अदालत के समक्ष रखी जाएगी।
शीर्ष अदालत ने कहा कि सभी संबंधित पक्षों ने स्वीकार किया है कि दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) की सीमा के भीतर, रोज 3,800 टन ठोस कचरा उत्पन्न होता है जिसका उपचार नहीं किया जा सकता क्योंकि मौजूदा संयंत्रों में उन्हें उपचार करने की क्षमता नहीं है। पीठ ने कहा, ‘‘यह राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली की बदहाल स्थिति है।’’
पीठ ने कहा, ‘‘यह किस तरह का परिदृश्य है और हम पूरी दुनिया को क्या संकेत दे रहे हैं? हम विकास के बारे में बात करते हैं, हम पर्यावरण के बारे में बात करते हैं। हम क्या संकेत दे रहे हैं।’’इस मामले की अगली सुनवाई अब 26 जुलाई को होगी।