उत्तर प्रदेश के गांव का रहने वाला एक लड़का जिसे न कोई जानता था और न ही कोई पहचानता था, लेकिन अब बड़े और अमीर घरों से रिश्ते आने लगे हैं। जी हां, हम बात कर रहे हैं बुलंदशहर जिले के रहने वाले पवन कुमार की, जिन्होंने अपनी कड़ी मेहनत, तप और त्याग से भारत की सबसे कठिन परीक्षाओं में एक संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) की परीक्षा में सफलता हासिल की। पवन ने न केवल अपने माता-पिता का सिर गर्व से ऊंचा किया, बल्कि अपने गांव को भी पहचान दिलाई है।
IAS ऑफिसर बनने से पहले जब पवन कुमार आम आदमी थे, यानी यूपीएससी एग्जाम को क्रैक करने से पहले गांव आते थे, तो लोगों को पता भी नहीं लगता था कि वह कब आए, लेकिन पवन के पिता मुकेश कुमार का कहना है कि जैसे ही उनके बेटे ने यह सूचना दी कि उन्होंने यूपीएससी की परीक्षा पास कर ली है और वह घर आ रहे हैं, इसके बाद उनके घर के बाहर ग्रामीणों की भीड़ लग गई। लोग डीजे और ढोल की थाप पर नाचते हुए उनके घर पहुंचे। जैसे ही पवन अपने गांव पहुंचे, भीड़ ने उनका हर्षोल्लास के साथ स्वागत किया। लोग फूल बरसाते हुए उनको लेकर आए। वहीं, पिता ने यह भी बताया कि उनके बेटे के लिए अब बड़े और अमीर घरों से रिश्ते आने लगे हैं।
IAS पवन कुमार कहना है कि उनकी सफलता के पीछे माता-पिता और बहनों का हाथ है। माता-पिता और बहनों ने दिन-रात मजदूरी की, लेकिन पवन को पढ़ाने में किसी तरह की कसर नहीं छोड़ी। पवन की इस बड़ी सफलता से माता-पिता और उनकी दोनों बहनें बेहद खुश हैं। पवन की सफलता के पीछे परिवार का त्याग और कठोर परिश्रम है। पवन कुमार ने मूलभूत सुविधाओं के अभाव के बाद भी हार नहीं मानी और अपनी लगन, मेहनत और सच्ची निष्ठा से संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) की परीक्षा में पास होकर अपने परिवार और गांव का नाम रोशन कर दिखाया।
बता दें, देश में हर साल लाखों अभ्यर्थी यूपीएससी की परीक्षा में बैठते हैं, लेकिन कुछ ही सफल हो पाते हैं। संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षा को भारत की सबसे कठिन परीक्षाओं में से एक माना जाता है। इस बार यूपीएससी की परीक्षा में 1016 अभ्यर्थी पास हुए हैं। इन्हीं अभ्यर्थियों में से एक पवन कुमार भी हैं, जो UPSC की परीक्षा में 239वीं रैंक हासिल करके IAS अधिकारी बने हैं।
कहा जाता है कि सफलता के पीछे कई वर्षों का संघर्ष होता है। पवन कुमार बुलंदशहर जिले के रघुनाथपुर गांव के रहने वाले हैं और उनके पिता मुकेश कुमार एक किसान हैं। परिवार की स्थिति ऐसी है कि सरकार द्वारा लागू की गई उज्ज्वला योजना के तहत मिले गैस सिलेंडर को भराने तक के पैसे नहीं थे। पिता और तीन बहनों ने दिन रात मजदूरी करके कोचिंग और किताबों का खर्च निकाला। किसी तरह 3200 रुपए जोड़े, तब जाकर परीक्षा की तैयारी के लिए सेकंड हैंड फोन खरीदा। घर की छत पर तिरपाल और अन्य सुविधाओं के बाद भी पवन कुमार ने हार नहीं मानी। पवन के पिता का कहना है कि उन्हें बेटे की कामयाबी पर बहुत गर्व है। उनकी मां भी खुशी से फूले नहीं समा रही हैं। वहीं पवन की तीनों बहनों को भी भाई की सफलता पर गर्व है।
पवन ने शुरुआती शिक्षा नैनीताल से ग्रहण की। उसके बाद कक्षा 9वीं से 12वीं तक की पढ़ाई बुलंदशहर के बुकलाना स्थित नवोदय विद्यालय में हुई। उन्होंने इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से जियोग्राफी और पॉलिटिकल साइंस में ग्रेजुएशन किया है। ग्रेजुएशन पूरी होने के बाद दिल्ली के मुखर्जी नगर स्थित एक कोचिंग सेंटर में तैयारी की। दो वर्ष कोचिंग के बाद अधिकतर समय उन्होंने अपने रूम पर रहकर सेल्फ स्टडी की। पवन को तीसरे प्रयास में यह सफलता मिली है।