NOTA: देशभर में लोकतंत्र का महापर्व मनाया जा रहा है। आज देश में लोकसभा चुनाव के दूसरे चरण में 88 लोकसभा सीटों पर मतदान हो रहा है। इस बीच 26 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट में मतदान से जुड़े एक और अहम मुद्दे पर सुनवाई हुई है। सुप्रीम कोर्ट से मांग की गई है कि यदि किसी भी सीट पर ज्यादा वोट NOTA को मिलते हैं तो दोबारा चुनाव कराया जाए। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को नोटिस जारी करते हुए जवाब मांगा है।
बता दें, मोटिवेशनल स्पीकर शिव खेड़ा की ओर से सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की गई याचिका पर कोर्ट में सुनवाई हुई। शिव खेड़ा की ओर से दायर इस याचिका में यह नियम बनाने की मांग की गई है कि NOTA से कम वोट पाने वाले उम्मीदवारों को 5 साल के लिए किसी भी तरह के चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध लगा दिया जाए। इसके अलावा, चुनाव आयोग को NOTA को भी एक चुनावी उम्मीदवार घोषित करना चाहिए। इसके अलावा, यदि चुनाव में सबसे अधिक वोट NOTA को मिले तो दोबारा चुनाव कराए जाने चाहिए।
शिव खेड़ा के वकील गोपाल शंकरनारायणन ने बहस करते हुए कहा कि यह एक अहम मुद्दा है, जिस पर विचार करना जरूरी है। उन्होंने सूरत लोकसभा सीट पर भाजपा प्रत्याशी के निर्विरोध जीतने का उदाहरण दिया और कहा कि वहां वह मैदान में अकेले ही बचे थे। वकील ने कहा कि हमने देखा कि सूरत में कोई कैंडिडेट ही नहीं बचा। सारे वोट एक ही उम्मीदवार को जाने थे। हालांकि, वकील ने कहा कि यह समझना जरूरी है कि यह विषय विस्तृत सुनवाई का है। इस याचिका का असर सूरत सीट के नतीजे या मौजूदा लोकसभा चुनाव के किसी भी पहलू पर नहीं पड़ेगा।
इस मामले की सुनवाई CJI डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच ने करते हुए चुनाव आयोग को नोटिस जारी करके जवाब मांगा है।
क्या है NOTA ?
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने सितंबर 2013 में एक फैसला दिया था, जिसके बाद इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन में नोटा का इस्तेमाल शुरू किया गया। उस समय सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को यह निर्देश दिया था कि वह बैलेट पेपर्स या ईवीएम में नोटा का प्रावधान करे, ताकि वोटर्स को किसी को भी वोट नहीं करने का हक मिल सके। इसके बाद आयोग ने ईवीएम में नोटा का बटन आखिरी विकल्प के रूप में रखा। रूल 49-O के नियम के मुताबिक, हर वोटर को वोट नहीं करने का अधिकार है। नोटा से पहले कोई वोटर अगर किसी प्रत्याशी को वोट नहीं देना चाहता था तो उसे फॉर्म 490 भरना पड़ता था। हालांकि, पोलिंग स्टेशन पर ऐसे फॉर्म भरना उस वोटर के लिए खतरा भी हो सकता था। यह कंडक्ट ऑफ इलेक्शन रूल्स, 1961 का उल्लंघन भी था। इससे वोटर की गोपनीयता भंग होती थी, जिसके बाद ईवीएम में नोटा को जोड़ा गया।