Lok Sabha Election 2024 के नतीजे सामने आ गए हैं। देश के निर्वाचन आयोग ने 4 जून को चुनाव के नतीजे घोषित कर दिए थे। इस बार चुनाव के नतीजों ने सभी को चकित कर दिया है। चुनाव के नतीजों का सबसे अधिक प्रभाव देश की सबसे अधिक 80 लोकसभा सीटों वाले उत्तर प्रदेश में देखने को मिला है। भाजपा ने यूपी की 80 सीटों को साधने और प्रचंड बहुमत हासिल करने के लिए पूरी ताकत झोंक दी थी, लेकिन भाजपा की उम्मीदों पर पूरी तरह से पानी फिर गया। यूपी में भाजपा को केवल 33 सीटें ही हाथ लगी, जबकि समाजवादी पार्टी को 37 और कांग्रेस को 6 सीटें मिली। वहीं, बसपा को एक भी सीट हाथ नहीं लगी।
दरअसल, उत्तर प्रदेश में बसपा सुप्रीमो मायावती ने किसी भी दल के साथ गठबंधन न करके अकेले चुनाव लड़ने का निर्णय लिया था। अगर बसपा, सपा-कांग्रेस के साथ गठबंधन करके चुनाव लड़ती तो इस बार सियासी तस्वीर कुछ और ही देखने को मिलती। बता दें, देश में एनडीए की नहीं बल्कि इंडिया गठबंधन की सरकार बनने की नौबत आ सकती थी, लेकिन बसपा के हाथी ने लोकसभा की 16 सीटों पर सपा-कांग्रेस गठबंधन के मनसूबों को बुरी तरह कुचल दिया है। बसपा के गठबंधन से अलग रहकर अकेले चुनाव लड़ने की वजह से कांग्रेस को चार सीटों पर, सपा को 11 सीटों पर और टीएमसी को एक सीट पर नुकसान हुआ। अगर बसपा, सपा और कांग्रेस तीनों दल गठबंधन करके चुनावी मैदान में उतरते तो संभव है कि तीनों को नगीना की सीट समेत 60 लोकसभा सीटें हाथ लग जातीं।
यूपी की 16 सीटों पर हार-जीत का अंतर लगभग 3150 से लेकर 55 हजार तक रहा है। ये 16 सीटें मिर्जापुर, अमरोहा, अकबरपुर, अलीगढ़, भदोही, बासगांव, बिजनौर, फतेहपुर सीकरी, फर्रुखाबाद, देवरिया, डुमरियागंज, हरदोई, मिश्रिख, फूलपुर, शाहजहांपुर और उन्नाव हैं। अगर इन सभी सीटों पर सपा-कांग्रेस और बसपा में गठबंधन होता तो तीनों के गठबंधन को 59 सीटें हासिल हो सकती थीं। इन सभी सीटों पर बसपा के प्रत्याशी को हार के अंतर से कहीं ज्यादा 64 हजार से लेकर दो लाख 18 हजार से ज्यादा मत मिले हैं। आइए इसे सारणी के माध्यम से समझने का प्रयास करते हैं…
इन विजेता उम्मीदवारों के खिलाफ दर्ज हैं दुष्कर्म के मामले, इतने हैं करोड़पति; पढ़ें पूरी रिपोर्ट
सीटें | भाजपा | सपा | बसपा | गठबंधन होता तो कुल मत |
शाहजहांपुर | 592718 | 537339 | 91710 | 629049 |
उन्नाव | 616133 | 580315(कांग्रेस) | 72527 | 652842 |
अलीगढ़ | 501834 | 486187 | 122929 | 610116 |
अकबरपुर | 517423 | 473078 | 73140 | 546218 |
अमरोहा | 517423 | 447863(कांग्रेस) | 164099 | 611962 |
बासगांव | 428693 | 425543(कांग्रेस) | 64750 | 490293 |
भदोही | 459982 | 415910(टीएमसी) | 155053 | 570963 |
बिजनौर | 404493(आरएलडी) | 366985 | 218986 | 585971 |
फूलपुर | 452600- | 448268 | 82586 | 530854 |
मिश्रिख | 475016 | 441610 | 11945 | 553555 |
फतेहपुर सीकरी | 445657 | 402252(कांग्रेस) | 120539 | 522791 |
मिर्जापुर | 471631 | 433821 | 144446 | 578267 |
हरदोई | 486798 | 458942 | 122629 | 581571 |
डुमरियागंज | 463303 | 420575 | 81305 | 501880 |
देवरिया | 504541 | 366985 | 218986 | 585971 |
फर्रुखाबाद | 487963 | 485285 | 45390 | 530675 |
लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस का केंद्रीय नेतृत्व चाहता था कि बसपा को गठबंधन में शामिल किया जाए, ताकि दलित वोट बैंक को अपनी ओर खींचा जा सके, लेकिन अखिलेश यादव इसके लिए तैयार नहीं हुए। उन्हें भरोसा था कि ‘पीडीए’ के जरिये वह मजबूती हासिल कर लेंगे। हालांकि, उन्होंने साबित भी किया, लेकिन रिकार्ड जीत हासिल करने के बावजूद गठबंधन केंद्र में सरकार बनाने से चूक गया।