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पीलीभीत से टूटा मेनका गांधी और वरुण गांधी का 35 साल पुराना सियासी नाता!

Maneka Gandhi | Varun Gandhi | Pilibhit | shreshth uttar pradesh |

Maneka Gandhi and Varun Gandhi: पूर्व केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी और उनके सांसद बेटे वरुण गांधी का पीलीभीत से 35 साल पुराना सियासी नाता अब टूट गया है। 1989 के बाद ऐसा पहली बार होने जा रहा है कि दोनों में से किसी ने भी पीलीभीत सीट से नामांकन नहीं किया। पीलीभीत सीट मेनका गांधी का गढ़ कहीं जाती रही है। ऐसे में अब यहां भाजपा से चुनाव लड़ रहे यूपी सरकार में कैबिनेट मंत्री जितिन प्रसाद के सामने उनकी राजनीतिक विरासत को सहेज कर रखना किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं होगा।

बीजेपी की ओर से जितिन प्रसाद का नाम घोषित होने के बाद भी वरुण गांधी के निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर नामांकन करने की चर्चा हो रही थी लेकिन वरुण गांधी ने आखिरी दिन नामांकन नहीं कराया और फिर जनता के लिए एक पत्र लिखकर उनका आभार जरूर जताया गया। इस बार चुनाव में मेनका गांधी बीजेपी की ओर से सुलतानपुर सीट से चुनाव लड़ रही है जबकि वरुण गांधी को पीलीभीत से टिकट नहीं दिया गया।

मेनका ने साल 1989 में पीलीभीत को अपनी कर्मभूमि के रूप में चुना था और लोकसभा पहुंची थीं। 1991 में राम लहर में वह बीजेपी के परशुराम से महज 6923 वोटो से चुनाव हार गई। इसके बाद 1996 से लेकर अब तक उन्हें यहां से जीत मिलती गई चाहे वह खुद मैदान में रही हो या उनका बेटा वरुण गांधी दोनों ही यहां से विजई होकर संसद पहुंचे। साल 1991 में चुनाव को छोड़ दें तो कोई ऐसा चुनाव नहीं हुआ जिसमें मेनका गांधी के खाते में दो लाख से कम वोट आए हैं। मेनका गांधी ने छह बार पीलीभीत का संसद में प्रतिनिधित्व किया इसी सीट से उनके बेटे वरुण गांधी दो बार सांसद बने। साल 2009 में उन्होंने अपनी राजनीतिक विरासत बेटे वरुण गांधी के हवाले कर दी और खुद सुल्तानपुर चली गई। मतदाताओं ने भी वरुण को हाथों हाथ लिया और वह रिकॉर्ड मतों से जीत गए।

साल 2014 में मेनका फिर पीलीभीत से तो वरुण सुल्तानपुर से जीते बाद में 2019 में सांसद बने। हालांकि भारतीय जनता पार्टी के बड़े नेता अब भी कह रहे हैं कि वरुण गांधी का उपयोग सभी जगह किया जाएगा। हालांकि वरुण गांधी चुनाव प्रचार में आएंगे या नहीं के सवाल पर बड़े नेता कुछ भी कहने से बचते दिखे। लेकिन सवाल यह भी है कि वरुण गांधी अब करेंगे क्या? कहा जा रहा है कि वरुण गांधी को पार्टी संगठन में किसी बड़े पद पर बैठाया जा सकता है।

साल 2009-10 में वरुण गांधी भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव रह चुके हैं। चर्चा यह भी है कि पार्टी वरुण को संगठन में कोई बड़ा पद दे सकती है। ऐसे में वरुण पीलीभीत में जितिन को जीतने के लिए अपील करते नजर आ सकते हैं। इसके अलावा चर्चा यह भी है कि वरुण गांधी को अवध क्षेत्र की किसी वीआईपी सीट से उतारा जा सकता है यह सब प्रयास इसलिए भी लगाए जा रहे हैं कि वरुण गांधी ने टिकट कटने के बाद भी ना तो भाजपा छोड़ी है और ना ही कोई ऐसा संकेत दिया है।


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