उत्तर प्रदेश की 10 राज्यसभा सीटों के लिए हुए चुनाव में जमकर सियासी उठापटक देखने को मिली। बीजेपी ने अपने आठवें प्रत्याशी को जिताने के लिए समाजवादी पार्टी में बड़ी तोड़फोड़ करने में कामयाबी पाई। इन सब के बीच सवाल यह है कि आखिरकार समाजवादी पार्टी के 7 विधायकों ने पाला बदल क्यों किया।
जानकार बताते हैं कि भारतीय जनता पार्टी के द्वारा बिछाई गई बिसात कुशल रणनीति और रण कौशल में माहिर कद्दावर नेताओं को लगाकर बीजेपी ने सपा से यह बाजी मार ली। तो वही सत्ता से पिछले कई वर्षों से बाहर चल रही समाजवादी पार्टी के बागी नेता सत्ता सुख भोगने के आकर्षण से अपने आप को दूर नहीं रख सके। इसीलिए सपा का तीसरा प्रत्याशी पस्त हो गया। विधानसभा में सपा के मुख्य सचेतक मनोज पांडे समेत उनके 7 विधायकों ने भाजपा प्रत्याशियों के पक्ष में मतदान किया तो अमेठी से विधायक महाराजी प्रजापति वोट देने ही नहीं आई। प्रत्याशी तय करने में सपा नेतृत्व की जिद भी उसकी रणनीति बिखरने को लेकर कम जिम्मेदार नहीं रही।
राज्यसभा चुनाव से 1 दिन पहले पार्टी डिनर में 8 विधायकों के गायब रहने से ही क्रॉस वोटिंग के प्रबल आसार बन गए थे। चुनावी राजनीति के माहिर माने जाने वाले समाजवादी पार्टी के महासचिव शिवपाल यादव को पोलिंग एजेंट बनाए जाने पर भी विधायकों की फुट को रोका नहीं जा सका। सबसे पहले ऊंचाहार से पार्टी विधायक मनोज पांडे ने मुख्य सचेतक के पद से इस्तीफा देकर इस विद्रोह की शुरुआत की। पार्टी नेतृत्व ने पीडीए के समीकरणों के विपरीत जाकर दो राज्यसभा उम्मीदवार कायस्थ जाति से मैदान में उतारे थे इसके विरोध में पार्टी के महासचिव स्वामी प्रसाद मौर्य और सलीम शेरवानी ने इस्तीफा दे दिया था। विधायक पलवी पटेल ने भी ऐलान किया कि वह सिर्फ पार्टी के पीडीए प्रत्याशी को ही वोट करेंगे। हालांकि उन्होंने वादा निभाते हुए सपा प्रत्याशी के पक्ष में ही वोट दिया।
प्रत्याशियों के चयन का विरोध करने वाले नेताओं का यह भी कहना था कि सपा ने उसको उस जाति से दो प्रत्याशी दिए जो वर्षों से भाजपा का वोट बैंक है। जानकार कहते हैं कि सत्ताधारी दल के नजदीक जाने से मिलने वाले लाभ की संभावना ने जहां पक्ष द्रोही होने में मदद की वही पार्टी की ओर से उन्हें मनाने की कारगर कोशिश होते हुए भी नहीं दिखी। ऐसा करने से नुकसान की आशंका खत्म नहीं तो कम जरूर की जा सकती थी। सपा की जिम्मेदारों का यहां तक कहना है कि पार्टी के तीसरे प्रत्याशी आलोक रंजन ने अपनी ओर से किसी विधायक से संपर्क तक नहीं किया और यही पार्टी की हार का कारण बनी सपा के 7 विधायकों ने भाजपा के पक्ष में वोटिंग की इनमें मनोज पांडे राकेश पांडे राकेश प्रताप सिंह अभय सिंह और विनोद चतुर्वेदी सामान्य जाति से जब की पूजा पाल और आशुतोष मौर्या क्रमशः पिछड़े और दलित जाति से हैं वहीं पिछड़ी जाति की ही विधायक और पूर्व मंत्री गायत्री प्रजापति की पत्नी महाराजी प्रजापति को गैर हाजिर होना ज्यादा उचित लगा।