Surya Tilak Ram Mandir: अयोध्या में राम मंदिर की भव्यता भक्तजनों को अपनी दिव्यता से अभिभूत किए हुए है। शताब्दियों से जिस मंदिर के बनने का इंतजार था अंततः वह न केवल बनकर सम्पन्न हुआ बल्कि इस मंदिर में रामलला की महिमा से श्रद्धालू भावविभोर हैं। राम अत्यंत ही भावुक विषय के तौर पर भारत के आध्यात्मिक चिंतन की चेतना रहे हैं। ऐसे में जब आज रामनवमी के दिन रामलला का ललाट सूर्य की किरण से चमक उठा, वैसे ही एक बार फिर माहौल राममय हो गया।
रामलला का “सूर्य तिलक” कैसे संभव हुआ
रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के बाद ये पहली बार हुआ है जब रामलला का सूर्य तिलक हुआ। शालिग्राम से बने रामलला के माथे पर सूर्य की चमक अद्भुत ही दर्शन करा रही थी। ध्यान देने की इस महान घटना के पीछे देश के वैज्ञानिकों की कड़ी मेहनत थी। धर्म और विज्ञान के संगम से क्या हो सकता है ये आज देखा गया। सूर्य अभिषेक एक ऐसी परंपरा है जो कई जैन और हिंदू सूर्य मंदिर मंदिरों में प्रैक्टिस की जाती रही है। उत्सुकता ये है कि राम मंदिर में इसके पीछे वैज्ञानिकों ने क्या-क्या यत्न किए। रामलला का “सूर्य तिलक” कैसे संभव हुआ, आइए जानते हैं।
IIT रुड़की को सौंपा था जिम्मा
सूर्य तिलक के लिए एक पूरा सिस्टम डेवलप किया गया है जिसको बनाने का काम रुड़की स्थित भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) के वैज्ञानिकों को सौंपा गया था। उन्होंने सूर्य की किरणों को एक तय समय पर सीधे रामलला के माथे पर डालने के लिए हाई क्वालिटी मिरर और लेंसों से युक्त एक उपकरण का इस्तेमाल किया है।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, यह उपकरण एक ऐसा गियरबॉक्स है जिसमें परावर्तक दर्पण (रिफ्लेक्टिव मिरर) और लेंस लगे हैं। यह गियरबॉक्स मंदिर के तीसरे तल पर स्थित ‘शिखर’ के पास से सूर्य की किरणों को एक खास समय पर गर्भगृह (मंदिर का सबसे पवित्र स्थान) में पहुंचने में मदद करता है। इस उपकरण में टिकाऊपन और जंग से बचाने के लिए पीतल और कांस्य जैसी धातुओं का इस्तेमाल किया गया है।
सूर्य तिलक उपकरण की खासियत
ये गियरबॉक्स बाकायदा चंद्र कैलेंडर के आधार पर डेवलप किया गया है। इससे यह हर साल रामनवमी के दिन सूर्य को सटीक रूप से रामलला के माथे पर ले जा सकता है। उपकरण में लगे ऑप्टिकल पाथ (Optical Patch), पाइप और बाकी चीजों को बिना किसी स्प्रिंग के डिजाइन किया गया है। बताया गया है कि ऐसा करके यह लंबे समय तक टिकाऊ रहेगा और मेंटेनेंस भी कम रहेगी। वैज्ञानिकों ने सूर्य तिलक सिस्टम का पहले ही टेस्ट कर लिया था।
इस सिस्टम के लेंस और पीतल की नलियों को बेंगलुरु की एक कंपनी ‘ऑप्टिका’ ने बनाया है। इसके अलावा, सूर्य की गतिविधि के बारे में तकनीकी सहायता भारतीय खगोल भौतिकी संस्थान (आईआईए), बेंगलुरु से मिली है। सबसे खास बात ये है कि गियर आधारित सूर्य तिलक प्रणाली में किसी भी प्रकार की बिजली, बैटरी या लोहे का उपयोग नहीं किया गया है।”
विज्ञान और धर्म का अनोखा मेल
सूर्य तिलक उपकरण को बनाने में पंच धातु का इस्तेमाल किया गया है। सूर्य तिलक को सफल बनाने के पीछे तीन चीजों का बड़ा हाथ रहा- आर्कियो एस्ट्रोनॉमी (Archaeoastronomy), मेटोनिक चक्र (Metonic cycle) और एनालेम्मा (Analemma)
आर्कियो एस्ट्रोनॉमी पुरातत्व खगोल विज्ञान खगोलीय पिंडों की स्थिति का उपयोग करते हुए स्मारकों को डिजाइन करने की एक परंपरा है। जबकि अनालेमा एक आठ अंकों वाला वक्र है जो पृथ्वी के झुकाव और कक्षा के कारण सूर्य की बदलती हुई वार्षिक स्थिति को दर्शाता है। मेटोनिक चक्र लगभग 19 वर्षों की अवधि होती है जो चंद्रमा के फेज से जुड़ी होती है।