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मासिक शिवरात्रि के दिन करें व्रत कथा का पाठ, जानें पूजा का शुभ मुहूर्त

ज्योतिष शास्त्र की मानें तो, मासिक शिवरात्रि के व्रत की पूजा निशा काल में होती है। इस दिन भगवान शिव की आराधना का शुभ मुहूर्त 30 सितंबर 2024 से रात 11 बजकर 47 मिनट से लेकर 1 अक्टूबर 2024 को सुबह 12 बजकर...
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Masik Shivratri 2024: हिंदू धर्म में मासिक शिवरात्रि का बहुत महत्व है। लोग मासिक शिवरात्रि का व्रत हर महीने कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को रखते हैं। माना जाता है कि इस दिन व्रत और पूजा-पाठ करने से भगवान शिव भक्तों की मन की हर इच्छा पूरी करते हैं।

यह भी कहा जाता है कि व्रत कथा का पाठ किए बिना मासिक शिवरात्रि की पूजा अधूरी होती है। इस दिन जो इंसान व्रत करने के साथ-साथ कथा का पाठ करता है। उसकी सभी इच्छाएं पूर्ण होती है।

पूजा का शुभ मुहूर्त

ज्योतिष शास्त्र की मानें तो, मासिक शिवरात्रि के व्रत की पूजा निशा काल में होती है। इस दिन भगवान शिव की आराधना का शुभ मुहूर्त 30 सितंबर 2024 से रात 11 बजकर 47 मिनट से लेकर 1 अक्टूबर 2024 को सुबह 12 बजकर 35 मिनट तक रहने वाला है।

मासिक शिवरात्रि व्रत कथा क्या है? (Masik Shivratri 2024)

चित्रभानु नाम का एक शिकारी था। वह जानवरों का शिकार करता था और अपने परिवार का भरण-पोषण करता था। उसने एक साहूकार से कर्ज ले रखा था, जिसे उसने लंबे समय से चुकाया नहीं था।

एक दिन गुस्सा होकर साहूकार ने शिकारी को शिव मठ में बंदी बना लिया। उस दिन शिवरात्रि थी और साहूकार के घर में भगवान शिव की पूजा हो रही थी, तो शिकारी ध्यान लगा कर भोलेनाथ से जुड़ी धार्मिक बातें सुनने लगा। अगले दिन शिकारी ने शिवरात्रि व्रत की कथा को भी सुना। इसके बाद साहूकार ने शाम होते ही शिकारी को अपने पास बुलाया और कर्ज चुकाने को कहा।

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शिकारी ने साहुकार से कहा कि वो अगले दिन सारा कर्ज चुका देगा और वो वहां से चला गया। रोज की भाती शिकारी जंगल में शिकार के लिए गया, लेकिन दिनभर बंदी गृह में रहने के कारण भूख-प्यास के कारण उसकी हालत खराब हो गई थी। फिर शिकार की तलाश में वह बहुत दूर निकल गया। रात हो गई, तो उसने सोचा वो जंगल में ही रूक जाए।

वह तालाब के किनारे एक बेल के पेड़ पर चढ़ कर रात गुजार रहा था। वृक्ष के नीचे शिवलिंग था जो बिल्वपत्रों से ढका हुआ था। शिकारी को इस बात की खबर नहीं थी। पड़ाव बनाते समय उसने जो टहनियां तोड़ीं, वे संयोग से शिवलिंग पर गिरती चली गई। इस प्रकार दिनभर भूखे-प्यासे शिकारी का व्रत भी हो गया और उसने न जानते हुए भी शिवलिंग पर बिल्वपत्र चढ़ा दिए।

कुछ समय बीत जाने के बाद एक गर्भिणी हिरणी तालाब पर पानी पीने आई। शिकारी ने धनुष पर तीर चढ़ाकर ज्यों ही प्रत्यंचा खींची, हिरणी बोली, मैं पेट से हूं। शीघ्र ही मां बनने वाली हूं। तुम एक साथ दो जीवों की हत्या करोगे, जो सही नहीं है। मैं बच्चे को जन्म देकर तुरंत ही तुम्हारे पास आ जाऊंगी, तब तुम मुझे मार लेना।

शिकारी ने घनुष नीचे कर ली। इस दौरान कुछ बिल्व पत्र अनायास ही टूट कर शिवलिंग पर गिर गए। इस प्रकार उससे अनजाने में ही प्रथम प्रहर की पूजा भी पूरी हो गई। कुछ समय बाद एक और हिरणी आई। उसके करीब आने पर शिकारी ने धनुष पर बाण चढ़ाया। तब उसे देख हिरणी ने विनम्रतापूर्वक निवेदन किया- ‘हे शिकारी! मैं थोड़ी देर पहले ऋतु से निवृत्त हुई हूं। कामातुर विरहिणी हूं। अपने प्रिय की खोज में भटक रही हूं। मैं अपने पति से मिलकर शीघ्र ही तुम्हारे पास आ जाऊंगी।’ शिकारी ने उसे भी जाने दिया।

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दो बार शिकार को खोने के बाद वह चिंता में पड़ गया। रात्रि का आखिरी पहर बीत रहा था। इस बार भी धनुष से लग कर कुछ बेलपत्र शिवलिंग पर जा गिरे तथा दूसरे प्रहर की पूजन भी सम्पन्न हो गई। तभी एक अन्य हिरणी अपने बच्चों के साथ उधर से निकली। शिकारी के लिए यह स्वर्णिम अवसर था। उसने धनुष पर तीर चढ़ाने में देर नहीं लगाई। वह तीर छोड़ने ही वाला था कि हिरणी बोली- ‘हे शिकारी! मैं इन बच्चों को इनके पिता के हवाले करके लौट आऊंगी। इस समय मुझे मत मारो।’

शिकारी हंसा और बोला- ‘सामने आए शिकार को छोड़ दूं, मैं ऐसा मूर्ख नहीं। इससे पहले में दो बार अपना शिकार खो चुका हूं। मेरे बच्चे भूख-प्यास से व्यग्र हो रहे होंगे।’ उत्तर में हिरणी ने फिर कहा- जैसे तुम्हें अपने बच्चों की ममता सता रही है, ठीक वैसे ही मुझे भी। हे शिकारी! मेरा विश्वास करो, मैं इन्हें इनके पिता के पास छोड़कर तुरंत लौटने की प्रतिज्ञा करती हूं।
हिरणी का दुखभरा स्वर सुनकर शिकारी को उस पर दया आ गई। उसने उस मृगी को भी जाने दिया। शिकार के अभाव में तथा भूख-प्यास से व्याकुल शिकारी अनजाने में ही बेल-वृक्ष पर बैठा बेलपत्र तोड़-तोड़कर नीचे फेंकता जा रहा था। पौ फटने को हुई तो एक हष्ट-पुष्ट मृग उसी रास्ते पर आया। शिकारी ने सोच लिया कि इसका शिकार वह अवश्य करेगा।

शिकारी की तनी प्रत्यंचा देखकर मृग विनीत स्वर में बोला- ‘हे शिकारी! यदि तुमने मुझसे पूर्व आने वाली तीन मृगियों तथा छोटे-छोटे बच्चों को मार डाला है, तो मुझे भी मारने में विलंब न करो, ताकि मुझे उनके वियोग में एक क्षण भी दुःख न सहना पड़े। मैं उन हिरणियों का पति हूं। यदि तुमने उन्हें जीवनदान दिया है तो मुझे भी कुछ क्षण का जीवन देने की कृपा करो। मैं उनसे मिलकर तुम्हारे समक्ष उपस्थित हो जाऊंगा।’

मृग की बात सुनते ही शिकारी के सामने पूरी रात का घटनाचक्र घूम गया। उसने सारी कथा मृग को – सुना दी। तब मृग ने कहा- ‘मेरी तीनों पत्नियां जिस प्रकार प्रतिज्ञाबद्ध होकर गई हैं, मेरी मृत्यु से अपने धर्म का पालन नहीं कर पाएंगी। अतः जैसे तुमने उन्हें विश्वासपात्र मानकर छोड़ा है, वैसे ही मुझे भी जाने दो। मैं उन सबके साथ तुम्हारे सामने शीघ्र ही उपस्थित होता हूं।’
शिकारी ने उसे भी जाने दिया। इस प्रकार प्रातः हो आई। उपवास, रात्रि-जागरण तथा शिवलिंग पर बेलपत्र चढ़ने से अनजाने में ही पर शिवरात्रि की पूजा पूर्ण हो गई। पर अनजाने में ही की हुई पूजन का परिणाम उसे तत्काल मिला। शिकारी का हिंसक हृदय निर्मल हो गया। उसमें भगवद्भक्ति का वास हो गया। थोड़ी ही देर बाद वह मृग सपरिवार शिकारी के समक्ष उपस्थित हो गया, ताकि वह उनका शिकार कर सके, किंतु जंगली पशुओं की ऐसी सत्यता, सात्विकता एवं सामूहिक प्रेमभावना देखकर शिकारी को बड़ी ग्लानि हुई। उसने मृग परिवार को जीवनदान दे दिया। अनजाने में शिवरात्रि के व्रत Shivratri Vrat का पालन करने पर शिकारी को मोक्ष और शिवलोक की प्राप्ति हुई।


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