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रोहिणी व्रत से दूर होगी घर की गरीबी, आएगा गुड लक; जानें पूजन विधि

जब सूर्योदय के बाद रोहिणी नक्षत्र पड़ता है, उस दिन रोहिणी व्रत किया जाता है। इस साल 3 जुलाई 2024 बुधवार को यह व्रत पड़ेगा। हिंदू धर्म में भी रोहिणी व्रत का महत्व है। इसे मां लक्ष्मी को समर्पित किया गया है।
Rohini Vrat 2024 | Rohini Vrat | Rohini nakshatra

Rohini Vrat 2024: रोहिणी व्रत को जैन धर्म का सबसे महत्वपूर्ण व्रत माना जाता है। जैसा कि नाम से ही मालूम होता है कि यह व्रत रोहिणी नक्षत्र से संबंधित है। जैन ग्रन्थों के मुताबिक, जब सूर्योदय के बाद रोहिणी नक्षत्र पड़ता है, उस दिन रोहिणी व्रत किया जाता है। इस साल 3 जुलाई 2024 बुधवार को यह व्रत पड़ेगा। हिंदू धर्म में भी रोहिणी व्रत का महत्व है। इसे मां लक्ष्मी को समर्पित किया गया है।

रोहिणी व्रत पूजा विधि

जैन ग्रन्थों के मुताबिक-

रोहिणी व्रत को पूरे विधि-विधान के साथ करने से शुभ फल की प्राप्ति होती है। व्रत के दिन सबसे पहले सुबह उठकर स्नान करना चाहिए। स्नान के पानी में गंगाजल जरूर मिलाएं। इसके बाद आचमन कर व्रत का संकल्प लें। आचमन करने के बाद सूर्य को अर्घ्य दें। फिर पूजा स्थल में साफ कपड़ा बिछाकर भगवान वासुपूज्य की मूर्ति और वेदी को स्थापित करें।

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अब भगवान वासुपूज्य को धूप, फल, फूल, दूर्वा आदि अर्पित करें। रोहिणी व्रत में सूर्यास्त के बाद भोजन नहीं किया जाता इसलिए शाम की आरती और पूजन के बाद फलाहार कर लें। अगले दिन नियमानुसार पूजा-पाठ करने के बाद व्रत खोलें और अपनी क्षमता के अनुसार गरीबों और जरूरतमंदों को दान दें। इसके अलावा व्रत का उद्यापन भी करें, तभी व्रत पूरा होगा।

हिन्दू धर्म के मुताबिक-

सुबह जल्दी उठकर पानी में गंगाजल मिलाकर स्नान कर स्वच्छ वस्त्र पहनें। पूजा स्थान को साफ कर लें और लाल कपड़ा बिछाकर देवी लक्ष्मी की मूर्ति या चित्र स्थापित करें। इसके बाद दीपक जलाकर मां लक्ष्मी की आरती उतारें और रोली, अक्षत, सुगंधित फूल, फल, मिठाई, पान और सुपारी आदि अर्पित करें। सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए इस व्रत को रखती हैं।

रोहिणी व्रत से मिलते हैं ये शुभ फल

जैन मान्यताओं के अनुसार, रोहिणी व्रत को पूरी श्रद्धा और विश्वास के साथ करने से महिलाओं को अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है। इसके साथ ही परिवार की दरिद्रता कष्ट दूर होते हैं। व्रत से तरक्की के नए रास्ते खुलते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस व्रत को कम-से-कम पांच साल तक रखने का विधान है।

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