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सावन की सोमवारी पर जरूर पढ़ें ये व्रत कथा, पूरी होगी मनचाही मुराद

Sawan Somvar Vrat Katha: सावन का महीना भगवान शिव का प्रिय महीना माना जाता है। आज सावन सोमवार का चौथा व्रत है। कहा जाता है कि इस व्रत को करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं और अपार सुख की प्राप्ति होती है।
Sawan Somvar Vrat Katha | Monday of Sawan | Shresth uttar Pradesh |

Sawan Somvar Vrat Katha: सावन का महीना भगवान शिव का प्रिय महीना माना जाता है। हिंदू मान्यताओं के अनुसार, सावन के पूरे महीने भगवान शिव अपने भक्तों पर विशेष ध्यान देते हैं। इसलिए भक्त भी अपने आराध्य को खुश करने के लिए उनकी पूजा-अर्चना करते हैं।

भक्त भगवान के आशीर्वाद के लिए सावन के सोमवार का व्रत रखते हैं। सावन के सोमवार का हिंदू धर्म में काफी महत्वपूर्ण स्थान है। आज सावन सोमवार का चौथा व्रत है। कहा जाता है कि इस व्रत को करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं और अपार सुख की प्राप्ति होती है।

माना जाता है कि सावन सोमवार के व्रत में कथा का पाठ किए बिना व्रत का पूर्ण फल नहीं मिलता है। अगर आप भी सावन के चौथे सोमवार के दिन व्रत रख रहे हैं, तो इस दिन इस व्रत कथा का पाठ जरूर करें…

क्या है सावन सोमवार व्रत की कथा

पौराणिक कथाओं की मानें तो एक साहूकार भगवान शिव का भक्त था। उसके पास बहुत धन-दौलत थी, उसे किसी भी चीज की कमी नहीं थी, लेकिन फिर भी वह उदास रहता था। उसकी कोई संतान नहीं थी और संतान प्राप्ति की कामना के लिए वह रोज भगवान शिव के मंदिर में जाकर दीपक जलाता था।

साहूकार की भक्ति भाव को देखकर एक दिन माता पार्वती ने भोलेनाथ से कहा कि प्रभु यह आपका अनन्य भक्त है। इसके सभी कष्टों को अवश्य दूर करना चाहिए। माता पार्वती की बात सुन शिवजी बोले कि हे देवी, इस साहूकार की कोई संतान नहीं है, यही इसके दुख का कारण है।

फिर माता पार्वती ने कहा, हे ईश्वर कृपा करके इसे पुत्र का वरदान दीजिए। तब भोलेनाथ ने कहा कि हे पार्वती इस साहूकार के भाग्य में संतान का योग नहीं है। अगर इसे पुत्र प्राप्ति का वरदान मिल भी गया तो वह केवल 12 वर्ष तक ही जीवित रहेगा।

इसके बाद माता पार्वती ने भोलेनाथ से कहा कि प्रभु आपको इस साहूकार को पुत्र का वरदान देना ही होगा, वरना भक्त क्यों आपकी सेवा-पूजा करेंगे? माता के जिद से हारकर भगवान शिव ने साहूकार को पुत्र का वरदान दिया, लेकिन यह भी कहा कि ये पुत्र केवल 12 वर्ष तक ही जीवित रहेगा।

साहूकार ये सब बातें सुन रहा था। उसने भगवान शिव की पूजा करनी नहीं छोड़ी। वो पहले की ही तरह भोलेनाथ की पूजा करता रहा। इसके बाद साहूकार के घर पुत्र ने जन्म लिया। परिवार में खूब खुशियां मनाई गई, लेकिन साहूकार पहले की तरह ही उदास रहा और पुत्र की कम आयु का जिक्र उसने किसी से भी नहीं किया।

किस्मत ने खेला खेल

जब पुत्र 11 वर्ष का हुआ तो एक दिन साहूकार की पत्नी ने पुत्र के विवाह के लिए कहा। इसपर साहूकार ने कहा कि पुत्र अभी पढ़ने के लिए काशी जायेगा। इसके बाद उसने पुत्र के मामा को बुलाया और कहा कि इसे पढ़ने के लिए काशी ले जाओ और रास्ते में जहां भी रुकना, वहां यज्ञ और ब्राह्मणों को भोजन कराते हुए आगे बढ़ना (Sawan Somvar Vrat Katha)।

वे दोनों इसी तरह करते हुए जा रहे थे कि रास्ते में एक राजकुमारी का विवाह हो रहा था। राजकुमारी का जिससे विवाह होना था वह एक आंख से काना था। तब उसके पिता ने अति सुंदर साहूकार के बेटे को देखा तो उसने सोचा कि क्यों न इसे ही दुल्हा बनाकर शादी कर दें।  

घरवालों को शादी के लिए मनाने के लिए राजा ने मामा को बहुत सारा धन दिया, तब मामा बालक को दुल्हा बनाने के लिए मान गया। फिर दोनों की शादी हो गई, लेकिन जाने से पहले बालक ने राजकुमारी की चुनरी पर लिखा कि तेरा विवाह मेरे साथ हुआ, लेकिन जिस राजकुमार के साथ तुम्हें भेजेंगे वह एक आंख से काना है।

इसके बाद वह अपने मामा के साथ काशी के लिए चला गया। जब राजकुमारी ने अपनी चुनरी पर लिखा हुआ पढ़ा तो उसने राजकुमार के साथ जाने से मना कर दिया। तब बारात वापस लौट गई। मामा और भांजे काशी जी पहुंच गए थे।

भगवान शिव ने दिया जान का वरदान

एक दिन जब मामा यज्ञ की तैयारी कर रहे थे और भांजा बहुत देर तक बाहर नहीं आया तो मामा ने अंदर जाकर देखा तो भांजे के प्राण निकल चुके थे। वह बहुत परेशान हुए, लेकिन सोचा कि अभी शोक मनाया तो ब्राह्मण चले जाएंगे और यज्ञ अधूरा रह जाएगा।

यज्ञ संपन्न हुआ तो मामा ने रोना-पीटना शुरू कर दिया। तभी भगवान शिव-पार्वती उधर से जा रहे थे, तब पार्वती जी ने शिवजी से पूछा हे प्रभु ये कौन रो रहा है? तब उन्हें पता चला कि ये तो वही साहूकार का पुत्र है।

तब पार्वती जी ने कहा, हे प्रभु इसे जीवित कर दें, नहीं तो रोते-रोते इसके माता-पिता के प्राण निकल जाएंगे। तब भोलेनाथ ने माता पार्वती से कहा कि इसकी आयु इतनी ही थी, लेकिन मां के बार-बार आग्रह करने पर भोलेनाथ ने उसे जीवित कर दिया। लड़का जी उठा।

सावन में भगवान शिव के इन तीन स्वरूपों की अराधना करने से मिलता है मनचाहा फल

इस कथा को पढ़ने या सुनने के बाद दूर होते है सारे कष्ट

इसके बाद दोनों अपने नगर को लौटे। रास्ते में वही नगर पड़ा, वहां राजकुमारी ने उन्हें पहचान लिया तब राजा ने राजकुमारी को साहूकार के बेटे के साथ बहुत सारा धन देकर विदा किया।

उधर साहूकार और उसकी पत्नी छत पर यह प्रण लेकर बैठे थे कि यदि उनका पुत्र सकुशल न लौटा तो वह छत से कूदकर अपने प्राण त्याग देंगे। तभी साहूकार ने अपने बेटे और बहू को देखा तो उसकी जान में जान आई।

उसी रात साहूकार को सपने में शिवजी ने दर्शन देकर कहा कि तुम्हारे पूजन से मैं प्रसन्न हुआ। इसलिए तुम्हारे पुत्र को जीवनदान दिया। कहा जाता है कि जो भी इस कथा को पढ़ेगा या सुनेगा उसके समस्त दुख दूर हो जाएंगे और उनकी सभी मनोकामनाएं पूरी होंगी (Sawan Somvar Vrat Katha)।


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