बहुजन समाज पार्टी, लोक दल, भाजपा और सपा का राजनीतिक सफर कर चुके पूर्व कैबिनेट मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य ने खुद की पार्टी का ऐलान कर दिया है। दरअसल खुद की पार्टी के जरिए वह स्वतंत्र वजूद स्थापित करना चाह रहे हैं। जानकारों की माने तो सुभाषपा नेता ओमप्रकाश राजभर और निषाद पार्टी के नेता संजय निषाद की तर्ज पर आगे बढ़ते हुए उन्हें देखा जा रहा है। ताकि भविष्य में उनका अपना दल भी हो, विधायक भी हो और सत्ता में भागीदारी के लिए अपनी बात मनवाने की क्षमता भी हो।
दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम में आज सम्मेलन में स्वामी प्रसाद मौर्य अपने इसी तरह की इरादों को सामने रखते हुए दिखे। सपा के राष्ट्रीय महासचिव और विधान परिषद से इस्तीफा देने वाले स्वामी प्रसाद मौर्य अभी तक किसी न किसी बड़े राजनीतिक दल का हिस्सा रहे हैं। बसपा सरकार और संगठन में वह महत्वपूर्ण स्थिति में रहे तो बीजेपी सरकार में भी उन्हें कैबिनेट मंत्री का पद दिया गया। उनकी बेटी संघमित्रा मौर्य भी भारतीय जनता पार्टी के टिकट पर पिछला लोकसभा चुनाव बदायूं से जीतकर संसद पहुंची विधानसभा चुनाव से और पहले वह कैबिनेट मंत्री के पद से इस्तीफा देकर सपा में आ गए। खुद विधानसभा चुनाव तो हार गए पर सपा ने उन्हें विधान परिषद भेजने के साथ-साथ राष्ट्रीय महासचिव के पद से भी नवाजा।
इन दलों में वह महत्वपूर्ण स्थिति में तो रहे लेकिन अब स्वामी प्रसाद मौर्य ऐसे दल को खड़ा करना चाहते हैं जिसके वह सर्वेसर्वा हो। अपने इस देश में वह कितना सफल होंगे यह आने वाला वक्त ही बताएगा। स्वामी प्रसाद मौर्या राष्ट्रीय शोषित समाज पार्टी का प्रतिनिधि सम्मेलन इसी उद्देश्य को आगे बढ़ाने के लिए कर रहे हैं। स्वामी प्रसाद मौर्य मुख्य अतिथि के रूप में इस कार्यक्रम में शामिल हो रहे हैं। सम्मेलन में यूपी बिहार मध्य प्रदेश छत्तीसगढ़ महाराष्ट्र और गुजरात से भी लोग शामिल हो रहे हैं। मालूम रहे की आरएसएसपी की स्थापना वर्ष 2013 में हुई थी।
सूत्र के मुताबिक आगे इस पार्टी में स्वामी प्रसाद मुख्य भूमिका में होंगे। तो वहीं जानकार स्वामी प्रसाद मौर्य को आज की राजनीति और खासकर से 2024 के चुनाव के लिए अप्रासंगिक करार दे रहे हैं। जानकार यह भी कहते हैं कि स्वामी प्रसाद मौर्य और ओपी राजभर और संजय निषाद में अंतर यह रहा कि स्वामी प्रसाद मौर्य ने हमेशा ही सनातन धर्म को नीचा दिखाने का काम किया जबकि राजभर और निषाद ने ऐसा कोई भी काम नहीं किया जिसके चलते स्वामी प्रसाद मौर्य की उनकी पार्टी में ही खूब विरोध हुआ जिसके चलते आज वह इस तरह का फैसला देने को मजबूर हुए।