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यूपी में दौड़ती है बिना मरीज वाली एंबुलेस, ये है पूरा सच

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, एंबुलेंस में हो रही धांधली का खुलासा करने के लिए चार जिलों के एंबुलेंस 102 और 108 पर नजर रखी गई। सबसे पहले जिला अयोध्या के एंबुलेंस पर नजर रखी गयी...
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UP News: यूपी के कई जिलों में एंबुलेंस बिना मरीजों के ही इधर से उधर घूमती रहती है। साथ ही, एंबुलेस की एक ही मोबाइल नंबर से 30-30 बुकिंग की जा रही है। बिना मरीजों के ही एंबुलेंस वापस हॉस्पिटल आ जाती है। जितनी फर्जी बुकिंग होती है, वो रिकॉर्ड में दर्ज हो जाता है। इसके अलावा पुराने मरीजों की फोटो को अपलोड कर दिया जाता है। इसके बाद सरकार से उसका भुगतान कराया जाता है। हर महीने करोड़ों रुपये सरकार की तरफ से खाते में आ जाते हैं।

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, एंबुलेंस में हो रही धांधली का खुलासा करने के लिए चार जिलों के एंबुलेंस 102 और 108 पर नजर रखी गई। सबसे पहले जिला अयोध्या के एंबुलेंस पर नजर रखी गयी। जन्मेजय अयोध्या जिला के एंबुलेंस सेवा के EMT पद पर थे। अब उन्हें नौकरी से निकाल दिया गया है, जन्मेजय से बात करने पर वो बताते है कि हमें दिन भर में आठ केस करने होते थे और किसी खास दिन पर हमें कैसे भी 20 केस करने ही होते थे।

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जन्मेजय आगे बताते हैं कि ज्यादा केस के दबाव के कारण एंबुलेंस के ड्राइवर को ईमएटी हॉस्पिटल के बाहर ही दुकानदारों से एंबुलेंस बुकिंग के लिए संपर्क कराना पड़ता है। दुकानदारों का मोबाइल लेकर 102 या 108 न0 पर काॅल मिलाकर एंबुलेस की जरूरत है, ऐसा बताते हैं, जिसके बाद एंबुलेस की गाड़ी उनकी बतायी हुई जगह पर पहुंच जाती है और बिना मरीज के ही एंबुलेंस वापस हॉस्पिटल आ जाती है। मरीज को एंबुलेंस में बैठाने के बाद मरीज की फोटो लोकेशन के साथ ऐप पर अपलोड की जाती है।

जन्मेजय ने बताया कि हम पहले से ही दूसरे फोन में कई खीचीं हुई फोटो खोलकर उस फोटो को अपने फोन से ले लेते हैं और फिर लोकेशन भी वहीं का आ जाता है। वहीं, अम्बेडकर नगर में एंबुलेस धांधली की शिकायतें सबसे ज्यादा आ रही हैं। अम्बेडकर जिले में कुल 58 एंम्बुलेंस हैं, जिनमें से 26 एंबुलेंस डायल 108, 26 एंबुलेंस 102 की हैं, जबकि 4 एंबुलेंस एडवांस लाइफ सपोर्ट के लिए हैं।

एंबुलेस सभी जिलें में अलग-अलग मेडिकल कॉलेज, सीएचसी , जिला हॉस्पिटल में तैनात रहते है। सबसे ज्यादा भीड़ जिला हॉस्पिटल में होता है। एंबुलेंस की कई शिकायतों पर 2022 में सरकार ने जांच के आदेश दिए थे, जिसके बाद चिकित्सा एवं स्वास्थ्य सेवाओं के महानिदेशक वेदव्रत सिंह ने जांच के आदेश दिए थे। जांच शुरू हुई तो पता चला कि जिले में 50% तक फर्जी केस पाए गए हैं।

देवरिया में जांच करने पर 8 हजार केस मिले। वाराणसी में 2021 के मुकाबले 2022 में तीन गुना ज्यादा केस मिले। लखीमपुर में 2022 फरवरी-मार्च-अप्रैल में 102 एंबुलेस पर 29,534 केस दर्ज कराये गए। इसमें जांच करने पर पता चला कि 16,875 केस फर्जी हैं। वहीं, बहराइच में फर्जी केस पर 17 करोड़ रुपये का सरकार की तरफ से भुगतान कराया गया है। ऐसे ही कुल 15 जिलों में जांच करने पर हजारों फर्जी केस पाये गए, लेकिन जांच के बाद भी कोई कार्रवाई नहीं की गई।

यूपी में सरकार की तरफ से GVK EMRI कंपनी को 102 एंबुलेंस में हर एक केस के लिए 3500 रुपये दिया जाता है। वहीं, 108 एंबुलेंस को सरकार महीने के 1 लाख 34 हजार रुपये देती है। हर रोज एंबुलेंस को 6 केस लाने होते है। अगर इससे ज्यादा केस आ गए तो स्वास्थ्य विभाग की ओर से कंपनी को एक्स्ट्रा पैसा दिया जाता है। इसलिए कई बार एंबुलेंस का बिल महीने में 3-3 लाख रुपये आ जाता है। एंबुलेंस चलाने वाले ड्राइवर इस बात को मानते हैं कि फर्जी केस में फंसे होने के कारण जो असली केस होता है, वहां वे पहुंच नहीं पाते है, जिस कारण मरीजों की जान चली जाती है।

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