उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनाव 2024 के रिजल्ट ने सभी को हैरान कर दिया है। यूपी में भाजपा के मुकाबले सपा को ज्यादा वोट मिले हैं। बीजेपी को 33 तो सपा को 43 सीटों पर जीत मिली है। ऐसे में अब सभी के मन में सवाल है कि आखिर ऐसा क्या हो गया कि यूपी में मोदी और योगी में से किसी का भी जादू नहीं चल सका। अगर हार के कारण पर नजर डाले तो कुछ का कहना है कि अखिलेश यादव का मुस्लिम-यादव, पिछड़ा दिल फैक्टर काम कर गया। साथ ही सीएम केजरीवाल की भविष्याणी वाला बयान भी हार के कारणों में से ही एक माना जा रहा है, जिसमें उन्होंने कहा था कि अगर भाजपा फिर से सत्ता में आती है तो योगी को सीएम पद से हटा दिया जाएगा।
इसके अलावा राजपूत वोटर्स की नाराजगी भी एक बड़ा कारण बताया जा रहा है। इसी बीच सोशल मीडिया पर कई चुटकुले और मीम्स वायरल हो रहे हैं, जो कि योगी आदित्यनाथ को बीजेपी की हार का जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। लेकिन वास्तविकता से इसका कितना लेना देना है चलिए समझते हैं।
भारतीय जनता पार्टी में सीएम योगी की अहमियत को आज के टाइम पर नकारा नहीं जा सकता है, जितनी डिमांड देश में पीएम मोदी की है उतनी ही डिमांड उत्तर प्रदेश में सीएम योगी की हैं। लोकसभा चुनाव की बात करें तो अगर पीएम मोदी ने 206 रैलियां की तो योगी ने 204 रैलियां और जनसभाएं की हैं। अपने राज्य में जीत के लिए कई नेताओं ने सीएम की जनसभा और रैलियों की डिमांड तक रखी थी। उनका काम करने का अंदाजा हर किसी को रास आता है। देश के कई मुख्यमंत्री खुद उन्हें फॉलो करते हैं। 2019 के लोकसभा चुनावों और 2022 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में कानून व्यवस्था की गारंटी के रूप में उन्हें देखा गया है, बल्कि खुद पीएम मोदी ने उनकी तारीफ की थी।
चुनावी परिणाम के बाद विपक्षी दल उनकी कार्यशैली पर सवाल खड़े कर रहे हैं। गोरखपुर में 2018 में हुए लोकसभा उपचुनाव और 2023 में हुए घोसी उपचुनाव की चर्चा कर रहे हैं। दरअसल 2017 में योगी आदित्यनाथ को सीएम बनने के बाद अपनी संसद की सीट छोड़नी पड़ी थी। गोरखपुर सीट पर उपचुनाव हुए और योगी की गढ़ रही सीट उनके सीएम बनने के बाद बीजेपी हार जाती है। जाहिर है ऐसे में सवाल सीएम योगी पर सवाल तो उठेंगे ही।
विरोधियों ने कहा कि योगी के पसंद के व्यक्ति को टिकट न मिलने के चलते उन्होंने जानबूझकर चुनाव में मन से प्रचार नहीं किया। इसी तरह घोसी उपचुनाव में हार पर कहा गया है कि वो दारा सिंह चौहान को विधायक बनाने की राह में वो ऱोड़ा बन गए क्योंकि चौहान को बीजेपी में लाने के पक्ष में वो नहीं थे। कहने का मतलब यही है कि योगी आदित्यनाथ को जब छेड़ा जाता है तो वो रिएक्ट जरूर करते हैं।