आखिरकार अखिलेश यादव के साथ वो हो गया, जिसका सबको डर था?, कैसे जोड़ने की चाहत में बिखर गया राहुल का कुनबा? क्यों स्वामी प्रसाद मौर्य का सपा से हो गया मोहभंग?, क्या अब वाकई यूपी में BJP बनाम अखिलेश बनाम राहुल की हो गई है सियासी लड़ाई?
आज बात UP में राहुल की न्याय यात्रा के बीच, विपक्षी गठबंधन INDIA के सबसे बड़े दल सपा और कांग्रेस के बीच बढ़ते तनाव और बहुत तेजी से बनते बिगड़ते सियासी जोड़ गणित की है।
यूपी में हर ओर सिर्फ इस बात की चर्चा है कि सीटों के बंटबारे पर, सपा कांग्रेस में बात ऐसी बिगड़ी है कि अब कोई गुंजाइश ही नहीं रही और लगभग ये तय हो चुका है कि अखिलेश और राहुल को 2024 की सियासी जंग न सिर्फ अकले ही लड़नी होगी। बल्कि एक दूसरे खिलाफ भी मैदान में ज़ोर आज़माइश करनी पड़ेगी।
बात तो ये है कि,अभी कांग्रेस और सपा के बीच सीट बंटबारे पर बात ठीक से पूरी भी नहीं हो पाई थी कि सपा की एक नहीं, बल्कि सपा के उम्मीदवारों की दूसरी लिस्ट भी सामने आ जाती है। जहां सपा ने अपने उम्मीदवारों की पहली लिस्ट में 16 प्रत्याशियों के नाम का ऐलान किया था, तो वहीं दूसरी लिस्ट में 11 उम्मीदवारों को सपा ने साइकिल देकर चुनावी मैदान में उतार दिया है। और यहीं से स्थिति पूरी तरह से बदल गई है, क्योंकि अब तक, कांग्रेस की ओर से तो यही कहा जा रहा था कि उसे, यूपी में कम से कम 20-25 सीटें चाहिए। और जयंत चौधरी के सपा के पाले से BJP में शामिल होने के बाद, कांग्रेस अपनी इस मांग पर मानो अड़ सी गई थी।
ख़बरें तो यही थीं कि राहुल गांधी ने भी अखिलेश यादव से सीट बंटबारे को लेकर बातचीत की है। क्योंकि कांग्रेस का पक्ष था कि उसे वो सीटें चाहिए, जहां पर 2019 या 2014 नहीं बल्कि 2009 में कांग्रेस का प्रदर्शन अपेक्षाकृत मज़बूत रहा है, और इन सबके बीच जब जयंत चले गए तो कांग्रेस ने अपनी नज़र पश्चिम यूपी की सीटों पर भी गढ़ाने की कोशिश की। कहा जा रहा है बिजनौर, मुरादाबाद और बलिया पर ही सपा-कांग्रेस का झगड़ा चरम पर पहुंचा है। सपा की ओर से UP में कुल 17 सीटें कांग्रेस को ऑफर की गई हैं, मगर कांग्रेस इस पर भी राजी नहीं हुई है तो वहीं इस बीच सपा ने अपने उम्मीदवारों की तीसरी लिस्ट भी जारी कर दी है।
पश्चिम यूपी में तकरीबन मोटे तौर पर 27 लोकसभा सीटें है, और ये 27 सीटें आस-पास के इलाके के लोकसभा क्षेत्र को भी बखूबी प्रभावित करती हैं। पश्चिम यूपी की अधिकांश सीटों पर जाट वोटबैंक, और मुस्लिम वोटर्स का फैसला ही अब तक निर्णायक माना जाता रहा है। जिसमें बड़ी तादाद में किसान शामिल रहते हैं। इसी वजह से कांग्रेस पश्चिम यूपी पर फोकस्ड है। क्योंकि मुस्लिम वोट बैंक, वो वोट बैंक है जिसका भरोसा कांग्रेस पर, अतीत में ही सही, मगर बाकी तमाम सियासी दलों की तुलना में 21 साबित होता है। साथ ही साथ किसान वोटबैंक का एकमुश्त BJP के खेमे में जाना भी अभी सिर्फ एक आंकलन भर है क्योंकि किसानों का एक वर्ग अभी भी अपनी मांगों को लेकर सरकार के खिलाफ आवाज़ उठा रहा है। ऐसे हालात में कांग्रेस यहां किसी भी कीमत पर ड्राइविंग सीट पर बने रहने के बारे में सोच रही है।
कांग्रेस-सपा में टूट की ख़बर से विपक्षी खेमा गदगद है, मगर अभी भी कांग्रेस-सपा दोनों ही ओर से ऐसे भी संकेत दिए जा रहे हैं कि स्थिति अब भी सुधर सकती है। सपा की ओर से, सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव की धर्मपत्नी डिंपल यादव कह चुकी हैं हमारी बातचीत जारी है। तो वहीं कांग्रेस की ओर से केसी वेणुगोपाल भी कह चुके हैं कि हमारा गठबंधन कायम है। बातचीत आखिरी दौर से गुजर रही है।
स्वामी प्रसाद मौर्या ने ये दो पत्र जारी किए हैं, जिनके ज़रिए उन्होंने न सिर्फ समाजवादी पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे दिया है, बल्कि विधान परिषद की सदस्यता से भी त्याग पत्र दे दिया है। साथ ही साथ ही इस मौके पर स्वामी प्रसाद मौर्या ने इशारों इशारों में अखिलेश यादव को भी निशाने पर ले लिया है। स्वामी प्रसाद मौर्य की सियासत हिंदू आस्था के प्रतीकों के विरोध पर टिकी हुई है। ऐसे में स्वामी प्रसाद का अखिलेश का साथ छोड़ना, अखिलेश के लिए मिले-जुले संकेत लेकर आया। दरअसल स्वामी प्रसाद मौर्य की हिंदू आस्था के प्रतीकों पर बेतुकी बयानबाज़ी को लेकर, अखिलेश यादव सपा के अंदर ही एक बड़े विरोध की लहर को लगातार देख रहे थे। इसीलिए वक्त-वक्त पर वो इशारों-इशारों में स्पष्ट कर चुके थे कि किसी को भी, किसी की भी आस्था पर बयानबाज़ी करने की ज़रुरत नहीं है।
इसके बावजूद स्वामी प्रसाद के न मानने पर, सपा का एक खेमा स्वामी प्रसाद पर हमलावर हो गया था और अखिलेश सार्वजनिक तौर पर तटस्थ भूमिका में ही थे। मगर अखिलेश यादव, स्वामी प्रसाद मौर्या को कई बार आगाह कर चुके थे। और सार्वजनिक मंचों से भी अखिलेश का रुख स्पष्ट होने लगा था कि, सनातन विरोधी एजेंडा स्वामी प्रसाद मौर्य का पर्सनल एजेंडा हो सकता है। मगर सपा का इससे कोई लेना देना नहीं। ऐसे में स्वामी का अखिलेश यादव के खेमे से छिटकना, सपा के सॉफ्ट हिंदुत्व के एजेंडे के हिसाब से अखिलेश के लिए बेहतर साबित हो सकता है। मगर जिस वर्ग पर स्वामी प्रसाद मौर्य अपना दावा ठोंकते हैं, उसमें खासकर OBC और दलित वर्ग आता है। जो पूरी तरह से किसके साथ है, ये तो चुनाव के बाद ही पता चलेगा। मगर अभी तो अनुमान यही है कि स्वामी प्रसाद मौर्य का कोर वोट बैंक कई हिस्सों में बंटेगा,जिसमें BJP, सपा, कांग्रेस, BSP समेत तमाम छोटे दल शामिल हैं।
बहरहाल, 2024 की बिसात पर चुनावी शोर चरम पर है और विपक्षी एकता के मंच इंडिया के ढहने की ख़बरों का बाज़ार गर्म है। ऐसे में लगता यही है कि यूपी में BJP बनाम इंडिया की लड़ाई अब BJP बनाम अखिलेश, बनाम राहुल, बनाम मायावती, बनाम अन्य की होने वाली है।