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बाबर ने तुड़वाया था राम मंदिर, मोदी-योगी राज में हुआ निर्माण, जानिए इतिहास

Ayodhya | Ram Mandir | PM Modi | CM Yogi | shreshth uttar pradesh |

History Of Ayodhya Ram Mandir: उत्तर प्रदेश के अयोध्या जिले में स्थित भव्य राम मंदिर भारत के प्रमुख मंदिरों में से एक है। हिंदू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, प्रभु श्रीराम का जन्म इसी स्थान पर हुआ था। 22 जनवरी 2024 को राम मंदिर में रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा की गई थी। प्राण-प्रतिष्ठा के बाद से प्रत्येक दिन 2 लाख श्रद्धालु रामलला के दर्शन के लिए आते हैं। माना जा रहा है कि अब वह दिन दूर नहीं जब भव्य राम मंदिर न केवल भारत में रह रहे हिंदुओं के लिए बल्कि,  विदेशों में रह रहे हिंदुओं के लिए भी आस्था का सबसे बड़ा केंद्र बनकर उभरेगा। वर्तमान में राम मंदिर जो आकार ले रहा है, उसके पीछे का सफर बेहद चुनौतीपूर्ण रहा है। इतिहास के पन्नों को पलट कर देखा जाए तो इसके पीछे हजारों लोगों का संघर्ष, बाबरी विवाद, अदालतों में चल रही लंबे समय से लड़ाई और सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के बाद राम मंदिर का निर्माण होना आसान नहीं था। आइए आपकों इतिहास के महत्वपूर्ण तथ्यों से अवगत कराते हैं।

1528:  राम मंदिर को तोड़ा

इस कहानी की शुरुआत 1528 से होती है। जब 16वीं शताब्दी में संपूर्ण दिल्ली पर बाबर का वर्चस्व हो गया और देश में मुगल साम्राज्य की नींव पड़ गई। इतिहासकारों की मानें तो बाबर के सूबेदार मीरबाकी ने बाबर के आदेश के बाद अयोध्या में राम मंदिर को तुड़वा दिया। इसके बाद वहां मस्जिद बनवाई गई जिसका नाम बाबरी मस्जिद रखा गया।

1813: पहली बार हिंदू संगठनों ने किया दावा

300 वर्षों के बाद हिंदू संगठनों ने 1813 में पहली बार बाबरी मस्जिद पर दावा किया था। हिंदुओं ने दावा किया कि अयोध्या में राम मंदिर तोड़कर बाबरी मस्जिद बनाई गई थी।

1838:  विवादित स्थल का पहली बार सर्वे

साल 1838 में पहली बार अयोध्या में सर्वे किया गया। ब्रिटिश अधिकारी मॉन्टगोमेरी मार्टिन ने विवाद वाली भूमि का सर्वे किया। सर्वेक्षण के बाद मार्टिन ने बताया कि मस्जिद में जो पिलर मिले हैं, वो हिंदू मंदिर से लिए गए हैं। ब्रिटिश अधिकारी के सर्वे के बाद अयोध्या में पहली बार साल 1838 में ही बवाल हुआ। 19वीं सदी में मुगलों और नवाबों का शासन कमजोर पड़ने लगा और अंग्रेज हुकूमत प्रभावी हो चुकी थी। इसके बाद से रामलला के जन्मस्थल को वापस पाने की लड़ाई आरंभ हुई।

1853: पहली बार हुई साम्प्रदायिक हिंसा

साल 1853 में पहली बार अयोध्या में साम्प्रदायिक हिंसा भड़की। इसके बाद भी 1855 तक दोनों पक्ष एक ही स्थान पर पूजा और नमाज अदा करते रहे। 1855 के बाद मुस्लिमों को मस्जिद में प्रवेश की इजाजत मिली, लेकिन हिंदुओं को अंदर जाने की मनाही थी। इसके बाद 1857 में हनुमानगढ़ी के महंत ने मस्जिद के आंगन के पूर्वी हिस्से में एक चबूतरा बनाया। इसी चबूतरे को राम चबूतरा कहा गया। इसी स्थान को रामजन्मभूमि भी कहा गया। विवाद बढ़ जाने के कारण 1859 में मिजिस्ट्रेट के आदेश के बाद मस्जिद में एक दीवार खड़ी कर दी गई। इस तरह भीतरी हिस्से में मुसलमानों को इबादत और बाहरी हिस्से में हिंदुओं को पूजा करने की अनुमति मिली।

1885: पहली बार मामले को न्यायालय में उठाया

साल 1885 में निर्मोही अखाड़ा के महंत रघुवार दास ने राम चबूतरे का कानूनी हक लेने के लिए कोर्ट में अर्जी दाखिल की। इस जगह उन्होंने मंदिर बनाने को लेकर कोर्ट से मांग की। लेकिन यह अर्जी साल 1886 में खारिज कर दी गई।

1934 :  साल 1934 में अयोध्या में सांप्रदायिक दंगे हुए। लोगों ने बाबरी मस्जिद के कुछ हिस्से को ढहा दिया। विवादित स्थल पर नमाज बंद हुई।

1949:  हिंदू देवी-देवताओं की मूर्तियों का प्रकटीकरण

साल 1949 में मुस्लिम पक्ष ने दावा किया कि बाबरी मस्जिद में केंद्रीय गुम्बद के नीचे हिंदुओं ने रामलला की मूर्ति स्थापित कर दी। मस्जिद में रामलला की पूजा शुरू हो गई। जहां एक ओर हिंदू वहां पूजा और दर्शन करने पहुंचे, तो मुस्लिम वहां विरोध करने पहुंचे। इसके 7 दिन बाद ही फैजाबाद कोर्ट ने बाबरी मस्जिद को विवादित भूमि घोषित कर इसके मुख्य द्वार पर ताला लगा दिया।

1950: आजादी के बाद पहला मुकदमा

1950 को हिंदू महासभा के वकील गोपाल सिंह विशारद ने अदालत में अर्जी दाखिल की। उन्होंने कोर्ट से रामलला की मूर्ति की पूजा का अधिकार देने की मांग की। लेकिन, कोर्ट ने इस अपील को खारिज कर दिया।

1959 :  निर्मोही अखाड़े ने विवादित स्थल पर मालिकाना हक जताया। अखाड़े ने इस बार केवल राम चबूतरे की ही नहीं बल्कि पूरे 2.77 एकड़ जमीन की मांग की।

1961:  दो साल बाद मुस्लिम पक्ष ने भी कोर्ट में केस दायर किया। सुन्नी वक्फ बोर्ड ने कहा कि यह जगह मुसलमानों की है। ढांचे को हिंदुओं से लेकर मुसलमानों को दे दिया जाए। ढांचे के अंदर से मूर्तियां हटा दी जाएं। इस विवाद को लेकर अगले 20-25 साल तक कोर्ट में केस चलता रहा।

1982:  साल 1982 में हिंदू संगठन एक्टिव हो गए। विश्व हिंदू परिषद ने हिंदू देवी-देवताओं के स्थलों पर मस्जिदों के निर्माण को साजिश करार दिया और इनकी मुक्ति के लिए अभियान चलाने का एलान किया।

1984:  दो साल बाद दिल्ली में संत-महात्माओं, हिंदू नेताओं ने अयोध्या के श्रीराम जन्मभूमि स्थल की मुक्ति और ताला खुलवाने के लिए आंदोलन करने का फैसला किया।

1986 :  फैजाबाद कोर्ट ने बाबरी मस्जिद के ताले को खोलने का आदेश दिया और मंदिर में पूजा करने की भी इजाजत दे दी।

1989: श्रीराम जन्मभूमि पर मंदिर के शिलान्यास की घोषणा

जनवरी 1989 में श्रीराम मंदिर निर्माण के लिए गांव-गांव शिला पूजन कराने का फैसला हुआ। साथ ही श्रीराम जन्मभूमि स्थल पर मंदिर के शिलान्यास की घोषणा की गई। इससे पहले सांप्रदायिक तनाव भी बढ़ा, कई जगहों पर दंगे हुए, सैकड़ों लोग मारे गए।

1990: आडवाणी की रथ यात्रा, राजनीतिक तख्तापलट

1990 के दशक में आंदोलन चरम पर था। इस बीच सितंबर 1990 को लाल कृष्ण आडवाणी रथ यात्रा लेकर निकले। रथयात्रा सोमनाथ से अयोध्या तक निकाली जानी थी। इस यात्रा ने राम जन्मभूमि आंदोलन को और धार दे दी। इस दौरान देशभर में खूब हिंसा और दंगे हुए, लोग भी मरे। देश की राजनीति भी तेजी से बदल रही थी। आडवाणी गिरफ्तार हुए। गिरफ्तारी के साथ केंद्र में राजनीतिक तख्तापलट भी हुए। भाजपा के समर्थन से बनी जनता दल की सरकार गिर गई। कांग्रेस के समर्थन से चंद्रशेखर प्रधानमंत्री बने। लेकिन, यह सरकार भी ज्यादा नहीं चली। इसके बाद नए सिरे से चुनाव हुए और एक बार फिर केंद्र में कांग्रेस सत्ता में आई।

1992: विवादित ढांचे को गिरा  दिया गया

दिसंबर 1992, इस दिन देशभर से भारी संख्या में कारसेवक अयोध्या पहुंचे और कारसेवकों ने मस्जिद को गिरा दिया। जिसके बाद हिंसा बढ़ती गई और हजारों कारसेवक मारे गए। इसी दिन उत्तर प्रदेश सहित देश में कई जगहों पर सांप्रदायिक हिंसा हुई, जिसमें अनेक लोगों की मौत हो गई। अयोध्या श्रीराम जन्मभूमि थाने में ढांचा ध्वंस मामले में भाजपा के कई नेताओं समेत हजारों लोगों पर मुकदमा दर्ज कर दिया गया।

1993: दर्शन-पूजन की अनुमति मिली

बाबरी मस्जिद के ढहाए जाने के वकील हरिशंकर जैन ने उच्च न्यायालय की लखनऊ खंडपीठ में गुहार लगाई कि भगवान को राम भोग की अनुमति दी जाए। जनवरी 1993 को न्यायाधीश हरिनाथ तिलहरी ने दर्शन-पूजन की अनुमति दे दी।

2002: मालिकाना हक पर हाईकोर्ट में हुई सुनवाई

अप्रैल 2003 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने विवादित स्थल के मालिकाना हक की कार्रवाई शुरू की। उच्च न्यायालय ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण को वैज्ञानिक सबूत जुटाने का निर्देश दिया। विवादित स्थान पर खुदाई 6 महीने तक चली। 22 अगस्त 2003 को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने न्यायालय को रिपोर्ट सौंपी। इसमें संबंधित स्थल पर जमीन के नीचे एक विशाल हिंदू धार्मिक ढांचा (मंदिर) होने की बात कही।

2010: अदालत ने ऐतिहासिक फैसला दिया

30 सितंबर 2010 को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाया। कोर्ट ने 2.77 एकड़ वाली विवादित भूमि को तीन बराबर हिस्सों में बांट दिया। इसमें एक तिहाई हिस्सा निर्मोही अखाड़ा, एक तिहाई हिस्सा राम जन्मभूमि न्यास और बाकी एक तिहाई हिस्सा सुन्नी वक्फ बोर्ड को दिया गया। इस फैसले से तीनों ही नाखुश थे। इसके बाद मामला सर्वोच्च न्यायालय पहुंचा।

2017: सुप्रीम कोर्ट द्वारा मध्यस्थता की पेशकश

अयोध्या में श्री राम जन्मभूमि को लेकर विवाद देश की सर्वोच्च अदालत तक पहुंच गया। 21 मार्च 2017 को सर्वोच्च न्यायालय ने मध्यस्थता से मामले सुलझाने की पेशकश की।

2019: 492 साल पुराने संघर्ष पर लगा विराम

6 अगस्त 2019 से देश की सर्वोच्च अदालत में इस विवाद पर लगातार 40 दिन तक सुनवाई हुई। 16 अक्टूबर 2019 को हिंदू-मुस्लिम पक्ष की दलीलें सुनने के बाद पांच सदस्यीय संविधान बेंच ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया।

9 नवंबर 2019 को सर्वोच्च न्यायलय के फैसले ने राम मंदिर के 492 साल पुराने संघर्ष पर विराम लगा दिया। सर्वोच्च न्यायालय ने संबंधित स्थल को श्रीराम जन्मभूमि माना और 2.77 एकड़ भूमि रामलला के स्वामित्व की मानी। विवादित भूमि रामलला विराजमान को दे दी गई। इसके साथ ही कोर्ट ने निर्देश दिया कि मंदिर निर्माण के लिए केंद्र सरकार तीन महीने में ट्रस्ट बनाए और ट्रस्ट निर्मोही अखाड़े के एक प्रतिनिधि को शामिल करे। इसके अलावा उत्तर प्रदेश सरकार को मुस्लिम पक्ष को वैकल्पिक रूप से मस्जिद बनाने के लिए 5 एकड़ भूमि किसी उपयुक्त स्थान पर उपलब्ध कराने के आदेश दिये। इसी के साथ दशकों से चला आ रहा विवाद समाप्त हो गया।

2020: श्रीराम मंदिर की आधारशिला के साथ निर्माण शुरू

5 फरवरी 2020 को केंद्र की मोदी सरकार ने अयोध्या में मंदिर निर्माण के लिए राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट की घोषणा की। 5 अगस्त 2020 को अयोध्या में राम मंदिर की आधारशिला रखी गई, जिसमें पीएम मोदी शामिल हुए। पीएम मोदी ने रामजन्मभूमि का पूजन और शिलान्यास किया।

2024: भव्य मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा

22 जनवरी 2024 वह ऐतिहासिक तारीख है, जब मंदिर में भगवान राम की प्राण प्रतिष्ठा हुई। श्रीराम के मूर्ति की प्राण-प्रतिष्ठा 22 जनवरी 2024 को शुभ मुहुर्त काल के दौरान की गई। जिसमें भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी मुख्य अतिथि रहे। प्राण प्रतिष्ठा के लिये उत्तर प्रदेश सरकार ने 100 करोड़ रुपये निर्धारित किये। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने लोगों से आग्रह किया था कि 22 जनवरी को सभी अपने घरों पर दीये जलायें। कार्यक्रम में मोदी समेत सिनेमा जगत के कई जानेमाने कलाकार एवं वीवीआईपी शामिल हुए।


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