राजस्थान देश की शौर्य भूमि और महाराणा प्रताप की वह धरती जिनका नाम सुनते ही हर भारतीय देश प्रेम के जज्बे और जुनून से भर उठता है। जिसने अपने समय के सबसे ताकतवर मुगल सम्राट अकबर की अधीनता स्वीकार करने की बजाय तमाम कठिनाइयों के बावजूद स्वाधीनता और राष्ट्रधर्म को चुना और खुद में राष्ट्रप्रेम की मिसाल बन गए।
दरअसल योगी आदित्यनाथ गोरखपुर के जिस गोरक्षपीठ के पीठाधीश्वर हैं, उसका और राजस्थान की वीर भूमि मेवाड़ का रिश्ता करीब एक सदी पुराना है। उनके दादा गुरु ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ का रिश्ता मेवाड़ से ही था। यह अलग बात है कि मात्र पांच वर्ष की अवस्था में नान्हू सिंह के नाम से जो बालक पीठ में आया, वह कभी वापस मेवाड़ नहीं गया। पर, उनके पूरे व्यक्तित्व में स्वाभिमान से समझौता न करने की तासीर और प्रताप जैसा ओज उम्रभर रहा।
महाराणा प्रताप से प्रभावित थे दिग्विजय नाथ
महाराणा प्रताप से अपने समय में दिग्विजय नाथ इतने प्रभावित थे कि 1932 उन्होंने पूर्वांचल में ज्ञान का प्रकाश जलाने के लिए जिस शैक्षिक प्रकल्प की स्थापना की, उसका नाम ही महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद रखा। आज इस नाम से कई शिक्षण संस्थाएं हैं। आप गोरखपुर रेलवे स्टेशन से बाहर निकलेंगे तो चौराहे पर महाराणा प्रताप की भव्य मूर्ति आपका स्वागत करेगी। कुल मिलाकर आप कह सकते हैं कि गोरखपुर में भी एक मिनी मेवाड़ बसता है। इसका श्रेय योगी आदित्यनाथ के दादा गुरु ब्रह्मलीन महंत दिग्विजय को ही जाता है।
रोहतक की मस्तनाथ पीठ का भी गोरक्षपीठ से है मधुर संबंध
यही नहीं रोहतक की मस्तनाथ पीठ का संबंध भी नाथ सम्प्रदाय से ही है। गोरक्षपीठ से मस्तनाथ पीठ के बेहद मधुर रिश्ते रहे हैं। दशकों से हर महत्वपूर्ण आयोजनों में एक दूसरे के यहां आना जाना रहा है। यहां के ब्रह्मलीन महंत चांदनाथ राजस्थान के अलवर सीट से सांसद रहे हैं। बाद में उनके शिष्य बालकनाथ ने भी उस सीट का प्रतिनिधित्व किया। इससे जाहिर होता है कि नाथ पंथ का राजस्थान और हरियाणा दोनों जगहों पर खासा प्रभाव है।
चित्तौड़ के रोड शो में दिखा था योगी का क्रेज
20 अप्रैल को योगी आदित्यनाथ ने राजस्थान के चित्तौड़गढ़ में रोड शो, राजसमंद, जोधपुर में जनसभाएं की, उनके दादा गुरु ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ की जन्म भूमि में उमड़ा जन सैलाब योगी की राजस्थान में लोकप्रियता का सबूत है।