Lok Sabha Election 2024: लोकसभा चुनाव 2024 में BJP ने पहली जीत दर्ज की है। गुजरात के सूरत में पार्टी के उम्मीदवार मुकेश दलाल निर्विरोध जीत गए हैं। दरअसल, नामांकन पत्र वापसी के अंतिम दिन सभी आठ प्रत्याशियों ने अपनी उम्मीदवारी पीछे खींच ली। इसके बाद BJP कैंडिडेट मुकेश दलाल निर्विरोध जीत गए। मुकेश दलाल को बीजेपी के प्रदेश प्रमुख सीआर पाटिल का करीबी माना जाता है। सूरत के इतिहास में निर्विरोध जीतने वाले दलाल पहले सांसद बने हैं।
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने सितंबर 2013 में एक फैसला दिया था, जिसके बाद इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन में नोटा का इस्तेमाल शुरू किया गया। उस समय सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को यह निर्देश दिया था कि वह बैलट पेपर्स या ईवीएम में नोटा का प्रावधान करें ताकि वोटर्स को किसी को भी वोट नहीं करने का हक मिल सके। इसके बाद आयोग ने ईवीएम में नोटा का बटन आखिरी विकल्प के रूप में रखा। रूल 49-O के नियम के मुताबिक, किसी वोटर को यह हक है कि वह वोट नहीं करे, नोटा से पहले कोई वोटर अगर किसी प्रत्याशी को वोट नहीं देना चाहता था तो उसे फॉर्म 490 भरना पड़ता था। हालांकि, पोलिंग स्टेशन पर ऐसे फॉर्म भरना उस वोटर के लिए खतरा भी हो सकता था। यह कंडक्ट ऑफ इलेक्शन रूल्स, 1961 का उल्लंघन भी था। इससे वोटर की गोपनीयता भंग होती थी, जिसके बाद ईवीएम में नोटा को जोड़ा गया।
तकनीकी रूप से देखा जाए तो किसी प्रत्याशी को निर्विरोध जीत ठहराना सही नहीं है। क्योंकि ईवीएम मशीन में नोटा का विकल्प होता है। हालांकि, लोकतांत्रिक व्यवस्था में ऐसा कर पाना बड़ा मुश्किल है, क्योंकि नोटा सभी वोटर्स का प्रतिनिधित्व नहीं करता है। यह कुछ ही लोगों का प्रतिनिधित्व करता है। अगर वोटिंग कराई जाए और 1 वोट भी प्रत्याशी के समर्थन में पड़ा तो भी उसे ही जीता हुआ माना जाएगा। लोकतंत्र में नोटा को उम्मीदवार नहीं माना जा सकता है, जो भी प्रत्याशी निर्विरोध जीतता है उसकी जीत कानूनी रूप से सही मानी जाएगी। क्योकि जुलाई 2020 में आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने कहा था कि नोटा का विकल्प वहां लागू नहीं हो सकता, जहां चुनाव में बस एक ही उम्मीदवार हो, ऐसे प्रत्याशी की निर्विरोध जीत होगी, जहां चुनाव में कई उम्मीदवार होंगे, वहां नोटा का नियम लागू होगा।
दरअसल, हाईकोर्ट में यह याचिका दायर की गई थी कि जहां एक प्रत्याशी हो वहां भी नोटा का विकल्प होना चाहिए। तब हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस जेके माहेश्वरी और जस्टिस बी कृष्णमोहन की पीठ ने कहा कि इस तरह का प्रावधान लागू नहीं किया जा सकता है। अगर कोई भी इस तरह का बदलाव चाहते हैं तो आप चुनाव आयोग, केंद्र और राज्य सरकार के पास जाएं।
जानिए देश का संविधान आखिर क्या कहता है
संविधान के अनुच्छेद 84-A के मुताबिक, जो व्यक्ति भारत का नागरिक नहीं है, उसे चुनाव लड़ने का कोई अधिकार नहीं है।
लोकसभा, विधानसभा चुनाव में बतौर प्रत्याशी उतरने के लिए न्यूनतम उम्र 25 वर्ष तय की गई है। 25 साल से कम उम्र होने पर कोई चुनाव नहीं लड़ सकता है। जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 4(d) के मुताबिक, जिस व्यक्ति का नाम संसदीय क्षेत्र की मतदाता सूची में नहीं है, वह चुनाव नहीं लड़ सकता है साथ ही वह व्यक्तिजिसे किसी मामले में 2 साल या उससे अधिक की सजा हुई है, वह भी चुनाव नहीं लड़ सकता है।
चुनाव लड़ने के लिए किसी भी उम्मीदवार को नामांकन पत्र भरना होता है, उसके प्रस्तावक नामांकन पत्र भरने के बाद रिटर्निंग ऑफिसर या चुनाव की अधिसूचना में सहायक रिटर्निंग ऑफिसर को सौंप सकते हैं। किसी भी उम्मीदवार को अपना नामांकन पत्र निर्वाचन आयोग द्वारा निर्धारित नामांकन दाखिल करने की अंतिम तिथि से पहले या उससे पहले पहुंचाना जरूरी है। साथ ही अगर प्रत्याशी ने सिक्योरिटी डिपॉजिट जमा नहीं किया है तो उसका नामांकन रद्द हो सकता है। नामांकन पत्र पर प्रत्याशी के अपने असली दस्तखत होने चाहिए। अगर यह साबित हो गया कि प्रत्याशी के बदले किसी और ने नामांकन पत्र पर हस्ताक्षर किए हैं तो वह नामांकन खारिज हो सकता है। सबसे बड़ी बात यह है कि प्रत्याशी का नाम मतदाता सूची में जरूर होना चाहिए। इसके अलावा, नामांकन पत्र में प्रत्याशी ने खुद से जुड़ी कोई जानकारी छिपाई या गलत जानकारी दी तो भी उसका नामांकन रद्द हो सकता है।
चुनाव आयोग के मुताबिक, उम्मीदवार को नामांकन पत्र दाखिल करते समय अत्यधिक सावधानी बरतनी चाहिए। इसके साथ ही रिटर्निंग अधिकारी को नामांकन प्रस्तुत करते समय उसी समय प्रारंभिक जांच करनी चाहिए। अगर, पहली नजर में उसे कोई गलती दिखाई देती है, तो उसे उम्मीदवार के ध्यान में लाना चाहिए। नामांकन पत्र में गलतियों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। रिटर्निंग ऑफिसर को ऐसी गलतियों को उम्मीदवार के ध्यान में लाना चाहिए, क्योकि अगर गलती होती है तो नामांकन रद्द हो जाता है।