Mayawati: सुप्रीम कोर्ट ने अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (SC/ST) में कोटे में कोटे को मंजूरी दे दी है। अदालत का कहना है कि कोटे में कोटा असमानता के खिलाफ नहीं है। अब राज्य सरकारों के पास ये अधिकार होगा कि वो अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति श्रेणियों के रिजर्वेशन कोटे में सब कैटेगरी बना सकें। अब राज्य की सरकारें इस पर कानून भी बना सकेंगी।
अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति में कोटे में कोटे को मंजूरी के सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर बसपा प्रमुख मायावती ने अपनी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने SC/ST आरक्षण के अंदर कोटे का विरोध जताया है। मायावती ने सवाल किया कि इसे नौवीं अनुसूची में क्यों नहीं डाला।
‘सामाजिक उत्पीड़न की तुलना में राजनीतिक़ उत्पीड़न कुछ भी नहीं’-Mayawati
मायावती ने सोशल मीडिया एक्स पर पोस्ट करते हुए लिखा, “सामाजिक उत्पीड़न की तुलना में राजनीतिक़ उत्पीड़न कुछ भी नहीं। क्या देश के ख़ासकर करोड़ों दलितों व आदिवासियों का जीवन द्वेष व भेदभाव-मुक्त आत्म-सम्मान व स्वाभिमान का हो पाया है। अगर नहीं तो फिर जाति के आधार पर तोड़े व पछाड़े गए इन वर्गों के बीच आरक्षण का बंटवारा कितना उचित?
‘संविधान की नौवीं अनुसूची में क्यों नहीं डाला’-Mayawati
मायावती ने आगे लिखा कि देश के एससी, एसटी व ओबीसी बहुजनों के प्रति कांग्रेस व भाजपा दोनों ही पार्टियों/सरकारों का रवैया उदारवादी रहा है सुधारवादी नहीं। वे इनके सामाजिक परिवर्तन व आर्थिक मुक्ति के पक्षधर नहीं वरना इन लोगों के आरक्षण को संविधान की 9वीं अनुसूची में डालकर इसकी सुरक्षा जरूर की गयी होती।
सुप्रीम कोर्ट ने दी कोटा के अंदर कोटा को मंजूरी
बता दें, देश की सबसे बड़ी अदालत ने कोटा के अंदर कोटा को मंजूरी दे दी है। सर्वोच्च न्यायालय के 7 न्यायाधीशों की पीठ ने कहा कि अब अनुसूचित जातियों का उप-वर्गीकरण, अनुसूचित जाति श्रेणियों के भीतर अधिक पिछड़े लोगों के लिए अलग से कोटा प्रदान करना स्वीकार्य होगा।
कोर्ट का कहना है कि अब राज्य सरकार पिछड़े लोगों में भी अधिक जरूरतमंदों को फायदा देने के लिए सब कैटेगरी बना सकती है। सुप्रीम कोर्ट ने आदेश में यह भी स्पष्ट किया कि उप-वर्गीकरण (सब कैटेगरी) की अनुमति देते समय राज्य किसी उप-श्रेणी के लिए 100 फीसद आरक्षण निर्धारित नहीं कर सकता।
साथ ही, राज्य को उप-श्रेणी के अपर्याप्त प्रतिनिधित्व के संबंध में अनुभवजन्य आंकड़ों के आधार पर उप-वर्गीकरण को उचित ठहराना होगा। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा, ‘हालांकि आरक्षण के बावजूद निचले तबके के लोगों को अपना पेशा छोड़ने में कठिनाई होती है। इस सब-कैटेगरी का आधार यह है कि एक बड़े समूह में से एक ग्रुप को अधिक भेदभाव का सामना करना पड़ता है।’
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CJI डीवाई चंद्रचूड़ ने कही ये बात
सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने फैसला सुनाते हुए कहा, ‘यहां छह मत हैं। हम में से ज्यादातर ने ईवी चिन्नैया के मत को ख़ारिज कर दिया है और हमारा मानना है कि सब-कैटेगरी (कोटा के अंदर कोटे) की अनुमति है। जस्टिस बेला त्रिवेदी ने इस पर असहमति जताई है।’
फैसला सुनाते हुए सीजेआई ने कहा, ‘एससी/एसटी वर्ग के लोग अक्सर व्यवस्थागत भेदभाव के कारण आगे नहीं बढ़ पाते हैं। एक वर्ग जिस संघर्ष का सामना करता है, वह निचले ग्रेड में मिलने वाले प्रतिनिधित्व से खत्म नहीं हो जाता है।’